#भंगभपंग - 3
बाड़मेर क़स्बे में आयुर्वेदिक औषधियाँ वैद्य आदरणीय शास्त्री जी के यहाँ मिलती थी। शास्त्री जी के औषधालय में मिलने वाली औषधियाँ के मुकाबले उपयोग में सर्वाधिक और निर्विरोध विजया औषधि ही आती थी। वैद्य जी किसी भी प्रकार के नशे के विरुद्ध थे। मुख्यतः आयुर्वेदिक औषधि कहकर भांग का सेवन करने वाले लोग उनको असह्य थे।
बाड़मेर में जिस गली ने अच्छा नाम कमाया, वह वैद्य जी की गली है। इस गली को प्रसिद्ध करने में स्त्रियों की बड़ी भूमिका है। इसी गली में गोटे और चूड़ी की दुकाने रही हैं। स्त्रियों के लिए ओढ़ने के गोटे, साड़ी के फाल, पिको और चूड़ियों का क्या महत्व है ये कोई भी व्यक्ति शादी करके जान सकता है।
हालांकि फाल, पिको, गोटे आदि का काम क़स्बे के हर मोहल्ले में होता रहा है लेकिन वैद्य जी सद्गुणों के प्रताप से इसी गली की दुकानें ही स्त्रियों में लोकप्रिय रही हैं। दस फीट की गली में दोनों तरफ दुकानें हैं इसलिए भीड़ ही अधिक रहती है। स्त्रियों के साथ आने वाला प्रत्येक पुरुष इस गली के नाम से परिचित होने लगा और कम समय में ही वैद्य जी की गली बाड़मेर में एक जानी पहचानी गली हो गयी।
वैद्य जी सर पर जोधपुरी चुंदड़ी वाला साफा बांधते थे। साफे पर कलगी और एक लंबी पूंछ होती थी। अपनी प्रसिद्धि और लोकसेवा के चाव से वैद्य जी ने एमएलए का चुनाव लड़ने का मन बनाया। ईश्वर की कृपा से एक आयुर्वेद चिकित्सक को चुनाव चिन्ह भी फूल और पत्ती आवंटित हो गया।
जड़ी-बूटी रसिको ने वैद्य जी के बारे में अफवाह फैलाई की वैद्य जी वोट मांगने गए। उन्होने वैसा ही शाही साफा बांध रखा था। महीन सफेद धोती पहन रखी थी। धोती का अगला पल्ला उन्होने हाथ में उठा रखा था और हाथ जोड़ रखे थे। वे घरों के बाहर देहरी पर बैठी महिलाओं से वोट देने की अपील करते जा रहे थे। "एक फूल ने दो पत्ती याद राखजो सा"
राम द्वारे के पास एक बूटीप्रिय सज्जन परिवार सहित घर के चौखटे पर आसन्न थे। वैद्य जी ने चुनाव प्रचार के उत्साह में महीन कपड़े की सफ़ेद धोती को कुछ अधिक ही ऊपर उठा रखा था और हाथ उनको अभिवादन में जुड़े हुये ही थे। उन्होने पुनः निवेदन किया। "एक फूल ने दो पत्ती याद राखजो सा।" सामने से जवाब आया। "वैद्य जी, एक फूल ने दो पत्ती दीखे है। कदी नी भूल सकां। आगे हालो"
इन्हीं वैद्य जी की गली के पास लक्ष्मी जी का मंदिर है। हनु भाई जोशी कभी धनलोभी नहीं रहे। उनकी ये चाहना कभी नहीं थी कि धन की सदानीरा नदी उनके घर में बहती रहे। लेकिन वे धन की पतली नाली की आशा अवश्य रखते थे। इसलिए हनु भाय्या ने स्कूल जाते हुये लक्ष्मी जी को दंडवत हुए बिना दंडवत प्रणाम किया।
स्कूल में पाठ था हवाई जहाज का आविष्कार।
उन्होने पूछा- "होशियार लड़का कहाँ है?" लड़का कुछ अधिक ही झुका हुआ था। वह अपने से अगली पंक्ति में बैठे छात्र के पीछे छिपा हुआ था। हनु भाय्या ने अपनी निगाह पीछे तक दौड़ाई लेकिन बूटी के प्रभाव में दृष्टि पीछे वाली दो पंक्तियों को देख पाने में असमर्थ थी।
उन्होने पुनः पूछा- "होशयार बच्चा आया नहीं?"
कक्षा में खुसर-पुसर हुई। एक लड़के ने कहा- "माड़ सा ओ लारे लुक्योड़ो है"
हनु भाय्या पीछे की पंक्ति तक गए। सहमा हुआ बच्चा उनको देखने लगा। उसकी कातर दृष्टि से हनु भाई द्रवित हो गए। उन्होने उसके सर पर हाथ फेरा और कक्षा के सामने ले आए। हनु भाई ने पूछा- "बताओ हवाई जहाज सजीव है कि निर्जीव?"
होशियार लड़का सर झुकाये चुप खड़ा रहा।
कक्षा की अगली पंक्ति में बैठा एक लड़का बोला- "माड़सा ईये रे धूजणि होवे"
हनु भाय्या ने पुनः एक कोमल दृष्टि होशियार बच्चे पर डाली और कहा जा अपनी बेंच पर बैठ जा। इसके बाद उन्होने कक्षा को बताया- "उन्नीस सौ तीन में दो भाइयों ने मिलकर एक हवाई जहाज बनाया।"
पाठ समाप्त होने के बाद उन्होने पूछा- "हवाई जहाज एक जगह से दूसरी जगह जा सकता है?"
बच्चे बोले- "हाँ"
"हवाई जहाज उड़ सकता है?"
बच्चे बोले- "हाँ"
"तो जो चीज़ें उड़ती और चलती हों, वे सजीव होती हैं कि निर्जीव?"
होशियार लड़का टेबल के नीचे घुस गया। बाकी बच्चों ने मौन धारण कर लिया। अचानक स्कूल की घंटी बजी। टन टन टन इसके साथ हनु भाय्या हंसने लेगे ही ही ही हिई।
रोज़ बस्ते उठाते भागते जाने वाले बच्चे भागना भूलकर माड़सा के साथ हंसने लगे। ही ही ही ही।
थोड़ी देर में गलियारा सजीव-निर्जीव के स्वर से भर गया। बच्चे धक्के मारते दौड़ते जा रहे थे। सजीव-निर्जीव का स्वर स्कूल के मुख्यद्वार की ओर भाग रहा था।
शाम को हनु भाय्या ने पुनः चिंता प्रकट की। "स्कूल की पढ़ाई सही नहीं है। एक ही बात एक जगह सही होती है दूजी जगह गलत।"
"सूं वात!"
"आज हूँ कक्षा मा पढवातो तो हवाई जहाज रो आविष्कार राइट बंधुओंए कीनो सै..."
हनु भाय्या की बात सुनकर मंडली एक साथ बोली। "सूं ! कालो थियु सै?"
हनु भाय्या अचरज भरी स्थिर दृष्टि से देखने लगे।
हरी गोली की तीसरी चूँटी काटकर डमजी भाय्या ने पनघट रोड के सिरे पर खड़े भड़भूँजे पर निगाह डाली। भाड़ खाली पड़ी थी। पास ही एक कुकरिया शाम ढलने की प्रतीक्षा में बैठा था। डमजी भाय्या ने सही जानकारी पेश की।
बात है अट्ठारह सौ निन्यानवे की। राइट ब्रदर बाड़मेर आए थे। उनको किसी ने बाड़मेर के गणेश मंदिर का पर्चा बताया था। दोनों भाई पन्ड्डिजी के चरणों में बैठ गए। बोले कोई आविष्कार करना है। पन्ड्डिजी जी ने कहा करवा देंगे। दोनों भाइयों को दो दो गिलास ठंडाई दी। ठंडाई देने के बाद लाल गमछा भिगोकर दोनों भाइयों के चेहरे पर हवा डाली। इसके बाद थोड़ी देर शांति से बैठ गए।
एक मक्खी आई बड़े राइट ब्रदर के राइट घुटने पर बैठ गयी। मक्खी ने वहाँ से चेहरे की ओर उड़ान भरी। राइट ब्रदर को दिखने लगा कि कोई विशाल यंत्र धीमी गति से उड़ता हुआ चेहरे की ओर आ रहा है। जिस गति से विशालकाय यान आ रहा था, उसी धीमी गति से बड़ा राइट ब्रदर अपने सर को विशाल यान से बचाने के लिए एक तरफ झुकाता जा रहा था। पांच मिनट की इस क्रिया के बाद उसका सर पीछे लटक चुका था। सर धीरे-धीरे सही पोजीशन में आया।
पन्ड्डिजी ने पूछा चमत्कार दिखा?
राइट ब्रदर ने आश्चर्य से पूछा- "ये क्या था पन्ड्डिजी?"
"तुमने क्या देखा?"
"जैसे कोई बहुत बड़ा यान उड़ता हुआ हमारे चेहरे के सामने आ रहा है। हम कठिनाई से उससे बच पाये है।"
पन्ड्डिजी ने आँखें मूंदकर ये योजना उनको सौंप दी। उन्होने कहा- "इस लघु में जो दिव्य दर्शन हुआ है इसे साकार करना है। यही आगे चलकर हवाई जहाज कहलाएगा। तुम्हारा नाम रोशन होगा। गणेश जी का नाम लेकर किए सब कार्य सिद्ध होते हैं।"
पन्ड्डिजी जी विजया औषधि के ऐसे ज्ञाता थे कि राइट बंधु अमेरिका पहुँच कर भी कई बरस लड़खड़ाते रहे। उनका बनाया यान भी लड़खड़ाया लेकिन चमत्कार खाली नहीं गया।
"असल मा तो हवाई जहाज री सोच गोपीलाल श्रीमाली री सै।"
हनु भाय्या को एक प्रश्न सूझा तभी तेज़ आवाज़ें आने लगीं। पुरानी सब्ज़ी मंडी से दो बैल आपस में उलझे हुये जैन मिष्ठान भंडार से होते हुये रामगोपाल रामविलास दुकान की ओर बढ़ रहे रहे थे। कमजोर कायर लोग चिल्लाते हुये भाग रहे थे। हनुमान जी के मंदिर के आगे बैठे डमजी और अन्य जड़ी बूटी रसिक वीर टस से मस न हुये। अचानक एक सांड ने दूजे को रोक दिया। उसने डमजी को झुककर नमस्ते किया। फिर दोनों वापस सींग भिड़ा कर तेलियों की गली की ओर बढ़ गए।