राय कॉलोनी का चिड़ीमार


मीर क्या सादे हैं बीमार हुए जिसके सबब,
उसी अत्तार के लड़के से दवा लेते हैं।

इस शेर से जाना कि लौंडेबाज़ी भी कोई शै होती है. ऐसी ही जानकारियां होने के ख़याल से माँ-बाप डरते थे. मैं चूँकि सायकिल पर सवार हो चुका था. मेरे पांवों में पहिये थे. मेरे साथ मेरा दोस्त था. अमित.

मैं राय कॉलोनी नहीं जाना चाहता था मगर मेरा नया महबूब वहीं था. उसके पास खास किस्म का सम्मोहन था. मेरा मन उसकी ओर खिंचता रहता था. मैं सायकिल चलाते हुए दोपहरें बिताना चाहता था. अमित से मिलने की एक खास वजह थी कि उसमें बातें दूर तक फेंकने का हुनर था. वह बात को इस तरह कहता जैसे बात को अंतिम सत्य से उसी ने लपेटा है. वह मेरा दुष्यंत कुमार था और वही दिनकर भी. लेकिन इस सब से बढ़कर वह सिनेमा का अद्भुत स्क्रिप्ट रायटर स्टीव मार्टिन और एडम मैके था.

आखिर मैं राय कॉलोनी गया. उसी लंबी काली पतली सड़क पर चलते हुए विश्वकर्मा न्याती नोरे के लिए घेर कर रखी हुई जगह के थोड़ा आगे अमित ने मुझे इशारा करके बताया कि इस घर में कोई महान शख्स रहता है. उस घर से थोड़ी दूर आगे अमित किसी सूने पड़े हुए बाड़े के रास्ते मुझे अपने घर ले गया. ये वास्तव में अमित के घर में बैक डोर एंट्री थी. मगर सीधी थी. इस एंट्री के ठीक सामने ओम प्रकाश नाम के एक लड़के का घर था. ओम् के पापा अध्यापक थे. बेहद सरल और संजीदा इंसान. ओम खुद खूब सीधा सादा और भला लड़का था. ओम् से मिलने के दिनों से पहले अमित ने मुझे राय कॉलोनी की उस महान आत्मा से मिलवाया.

बच्चों के बिगड़ने की असीमित संभावनाएं होती हैं. शराबी-जुआरियों की संगत में पड़ जाना. चोरी और सीनाजोरी करने वालों का संग कर लेना. हमउम्र लड़कियों के घरों के आस-पास डोलते हुए पिट जाने का या आवारा भटकते रहने का और पढाई से मन उचट जाने का. लेकिन श्री चिड़ीमार की कथा का को जानना भयानक बिगड़ जाना था.

श्री चिड़ीमार कथा

मैं पीछे और अमित आगे. हम महान आत्मा के घर में दाखिल हुए. मेजबान ने उधारी वसूलने आए लोगों को ट्रीट करने के भाव में दरवाज़ा खोला मगर हमारे प्रति रुख एक अनुभवी, सताई हुई और जीवन से बेज़ार ज़िन्दगी सा ही रखा. उसने कहा बैठो. हम बैठ गए. अमित ने कहा- "चिड़ी विड़ी पकड़ते हो या छोड़ दिया?" उसने प्रतिकार भरा मुंह बनाया. दोनों की भंगिमाएं लड़ाई जैसी होने लगी. माहौल गंभीर हो गया और हम विदा हो लिए.

वहाँ से लौटते हुए अमित ने बताया कि एक दोपहर मैं इसके घर गया. मैंने दरवाज़ा खटखटाया तो अंदर से आवाज़ आई- "कौन है?" मैंने कहा- "भीखो." अंदर से आवाज़ आई- "रुक." मैंने पूछा- "क्या कर रहे हो?" अंदर से आवाज़- "आई चिड़ी पकड़ रहे हैं." अमित ने ज़रा देर बाद दरवाज़े के कुंदे पर पैर रखकर रोशनदान से अंदर झाँका तो पाया कि चिड़ी नहीं पकड़ी जा रही थी.

साले गंदे कहीं के.

मैंने पूछा- "अमित इसका मतलब क्या हुआ?" अमित ने मुझे दया भरी नज़रों से देखा. उसे खूब अफ़सोस हुआ कि मैं किसी खास ज्ञान के मामले में दरिद्र हूँ. उसने कहा- "वो नहीं समझते हो." मैंने पूछा- "क्या?" अमित ने खूब परेशानी से बाहर आने की कोशिश करते हुए कहा घर चलो बताता हूँ.

आह ! मैं सचमुच गलत संगत में था. मुझे इस कहने का अर्थ समझते हुए मजा खूब आया मगर कोई डर इस मजे का पीछा कर रहा था. इस बयान की सच्चाई के बारे में अनेक दावे थे. राय कॉलोनी में अमित मुझे जिस किसी से भी मिलवाता उससे ये ज़रूर पूछता कि चिड़ीमार से मिले या नहीं. मौका है फायदा उठाओ. अगले की हंसी और आँख मारने की अदा मुझे यकीन दिलाती कि वह वाकई ऐसा गया गुज़रा लड़का है.

चिड़ीमार वास्तव में प्राण की टोपी, राजकपूर के लंबे रूसी कोट और शेक्सपीयर के बर्फ के जूतों का दीवाना था. वह इस साज़ ओ सामान के साथ अग्रवालों की गली का चक्कर लगाया करता था. उसी हवा के झोंके के लिए जिसकी प्रतीक्षा अमित हाई स्कूल के मूत्रालय के पास खड़े होकर किया करता था. चिड़ीमार के इस प्रतिदिन के उपक्रम पर अग्रवालों की गली के लड़कों को आपत्ति थी. वे नहीं चाहते थे कि उनकी गली की किसी लड़की के लिए कोई इस तरह फेरे लगाये. ये एक तरह से उस गली के लड़कों को चुनौती थी. वे इसे स्वीकार करना चाहते थे किन्तु महाराज सा ने कह रखा था जीवों के प्रति दया रखो इसलिए इस चिड़ीमार के विरुद्ध कोई कदम न उठाते थे.

एक ओर हमारी ही उम्र का लड़का जैन मुनि तरुण सागर जी बनकर कटु प्रवचन के लिए प्रसिद्द होता जा रहा था. उसके प्रवचन की कैसेट लोग घरों में सुनते थे. दूजी और अग्रवालों की गली के लड़के कटुप्रवचन करने में असमर्थ थे. चिड़ीमार की नियमित आवाजाही से परेशां लड़कों ने राय कॉलोनी से ही कुछ गुंडे हायर किये गए. जिस ज़माने में एक-दो रूपये में मिर्ची बड़ा आ जाता था उस ज़माने में पचास रूपये जितनी अविश्वसनीय फीस चिड़ीमार का काम पक्का करने के लिए दी गयी.

लड़कों ने चीड़ीमार को उसी वेशभूषा में शीतल हवा वाले घर के बाहर विचरण करते हुए रोका और कहा "आप बड़े स्मार्ट आदमी हो." चिड़ीमार इसी अवसर की प्रतीक्षा में था कि इस गली में कोई तो पहचान निकले. वहाँ खूब पहचान निकली. तीसरे दिन तय हुआ कि इतवार को सूजेश्वर के नीचे घाटी में गोठ होगी. इसका खर्च उठाने के लिए चिड़ीमार ने खुद को प्रस्तुत कर दिया.

राय कॉलोनी जिस काम के लिए बदनाम थी, वही हुआ. चिड़ीमार को मूर्ख बना कर गोठ के नाम पर पहाड़ों की तलहटी में ले गए. वहाँ खूब पीटा. उसको नंगा किया और फिर उसके कपड़े लेकर चलते बने. अमित का कहना था कि इस घनघोर अपमान से शर्मिंदा होकर प्रेम ने सोन तलाई में छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली. चीड़ीमार ने आस पास कोई चीज़ खोजी. उसे याद आया कि एक फिल्म में जब धर्मेन्द्र के कपडे इसी तरह चुरा या लूट लिए जाते हैं तब वह बांस की छबड़ी में खुद के अप्रदर्शनीय अंग छुपा कर मंजिल तक जाता है. चिड़ीमार को छाबड़ी न मिली लेकिन सौभाग्य से गूणकी मिल गयी. वह बारदाने में खुद को ढके हुए लेकिन नंग धड़ंग सूजेश्वर से राय कॉलोनी के आखिर छोर तक आ पाया.


इस घटना की सत्यता के लिए अमित ने कई लोगों से हाँ भरवाई मगर मुझे अब तक यही लगता है कि ये अमित का चिड़ीमार के प्रति रश्क था और अमित ने अपने कथा कौशल से रकीब से बदला लिया था. मेरा दोस्त अमित एक अच्छा कहानीकार बनेगा मैं ये सोचता लेकिन वह हमारे एकांत में कविताएँ सुनाया करता. मैंने तीन चार महीने पहले ही कविता सुनाने से रोक दिए जाने से अपमानित होकर उस कविता को फाड़कर फेंक दिया था.

एक रोज़ अमित ने पूछा- "कविता नहीं लिखी कोई?" मैंने कहा- "मुझसे कविता नहीं लिखी जाती."उसने कहा- "कोई बात नहीं. ऐसा सबके साथ होता है. एक दिन अपने आप कविता बनेगी." वह थोड़ा सा चुप रहा और फिर उसने अपनी डायरी निकाल ली. डायरी पर फेविकोल के जोड़ को तोड़ने के लिए ज़ोर लगाते हुए हाथी थे मगर जोड़ इतना मजबूत था कि हाथी वहीँ खड़े हुए थे. अमित ने कुछ पन्ने पलटे और कविता सुनाने लगा. एक कविता सुनाते हुए अमित को जाने क्या याद आया कि उसने कहा चलो.

हम दोनों अपनी-अपनी सायकिल लिए चल पड़े. राय कॉलोनी में पुराने आयकर ऑफिस के पास वाले छोटे से चौराहे पर हम अलग मुड़ गए. अमित बाएं मुड़ गया और मैं दायें. मेरी सायकिल पीएचईडी के गोदाम की ओर ढलान में भागी जा रही थी.
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