रिचर्ड वाग्मेज का एक उपन्यास है इन्डियन होर्स. एक शराबी के पुनर्वास केंद्र के होस्टल में बीते बचपन की सरल दिखने वाली जटिल स्मृतियों के पहरे में आगे बढ़ता हुआ. लगभग मृत्यु से जीवन की तलाश की ओर बढ़ता हुआ कथानक. ऐसे ही नो मेंस लेंड में एक घोड़ा. जो घोड़ा महाद्वीपों के पार चला आया था. बेच दिए जाने के बाद एक युद्ध का हिस्सा बनाता है और आख़िरकार सूंघता है अपनी ज़मीन को. मिशेल मोर्पुर्गो के नोवेल वार होर्स का घोड़ा. आह ! कितना कठिन है ये जीवन. हज़ार त्रासदियों से भरा हुआ. हज़ार लोगिंग्नेस से गुज़रता हुआ. ऐसे ही जाने क्यों एलेक्स एडम्स एक इस तरह की फंतासी बुनते हैं जिसमें मनुष्य, मनुष्य से अलग किसी जीव या वस्तु के कायांतरण की ओर बढ़ता जाता है. यह नोवेल एक समानांतर डर बुनता है. तीस साल की नायिका इसी भय से गुज़रती है. इस उपन्यास का शीर्षक है, व्हाईट होर्स. ये बिम्ब इसलिए कि सफ़ेद घोड़े हमारी जीवन इच्छा के प्रतीक हैं और जंगली घोड़े हमारी सहवास कामना के. और घोड़े पालने वाले किसी काऊ बॉय की सबसे सुन्दर कहानी हम पढते हैं कोर्मेक मैककार्थी के आल प्रेटी होर्सेस में. घोड़े हमारे आदिम सपनों के वाहक हैं. हम खुद घोड़े हैं. हमारी शक्ति का पैमाना अश्व शक्ति है. हमारी दौलत जंगलीपन को पालतू बनाने के सामर्थ्य की गणना है. मेरी प्रिय किताबों की सूची में निकोलस इवांस की होर्स विस्परर हमेशा रहेगी. ये एक कौमार्य से भरा प्रेम है. इसलिए कि लेखक की पहली ही किताब है और क्या किताब है. ऐसे कि जैसे किसी ने अजाने ही जी लिया हो ज़िंदगी को उसकी तमाम खूबसूरती के साथ.
मैं पिछले कई दिनों से एक किताब को टुकड़ों में पढ़ पाया हूँ. ये पढ़ना कुछ ऐसा है जैसे कि हम जीना मुल्तवी करें और फिर से उसे जीने लगें. मैं अपने वुजूद की लड़ाई के लिए गिने चुने विषय रखता हूँ. जैसे कि मैं प्रेम नहीं करता हूँ इसलिए मेरी कोई लड़ाई प्रेम के लिए नहीं है. मैं सामंत नहीं होना चाहता हूँ इसलिए मेरी लड़ाई किसी प्रकार की शक्तियों के लिए भी नहीं है. मैंने इस दुनिया में अपने आपको एक मुसाफिर की तरह समझा है और इसी अक्लमंदी की वहज से मैं कुछ भी स्थायी बनाये जाने के लिए संघर्षरत नहीं होना चाहता हूँ.
मैं किताब की कविताओं में एम आई रोड से आती किसी टूटन की आवाज़ को सहेजता हूँ अपनी स्मृति की बुगची में, इसी सहेज को पढते हुए पाता हूँ कि हाँ दुनिया में कितना कुछ दरकता टूटता जाता है हर क्षण. मुझे नहीं मालूम कि सन्यस्त होना किसे कहते हैं मगर कवितायेँ मुझे याद दिलाती हैं कि कुदरत के किसी हिस्से का कुदरत के साथ निरपेक्ष जीवन जीना. कुदरत के सब सजीव और निर्जीव तत्वों को उनके पूरे विस्तार और अस्तित्व के साथ बिना छेड़ के रख देना ही सन्यस्त होना है. सन्यस्त होना इस तरह भी है कि कविता कहती है- हम किसी मुहावरे की तरह लौटते हैं घर. दरअसल खुद को मुहावरे की तरह देखना उस बात की ओर इशारा है कि ज़िन्दगी किस उलटी उड़ान और उसकी लौट का नाम है. छीज के विपरीत की वह आशा जो जानती है कि ज़िन्दगी गुज़र रही है मगर फिर भी है. अजंता देव की कवितायेँ कहती हैं कि परलोक में हमारी प्रतीक्षा में होने चाहिए बहुत से मित्र और परिजन कि विगत चालीस सालों में बिछड गए हैं, बेहिसाब. इसे कविता में कहा जाता है ऐसे ही परलोक में महफ़िल.
मैं किताब की कविताओं में एम आई रोड से आती किसी टूटन की आवाज़ को सहेजता हूँ अपनी स्मृति की बुगची में, इसी सहेज को पढते हुए पाता हूँ कि हाँ दुनिया में कितना कुछ दरकता टूटता जाता है हर क्षण. मुझे नहीं मालूम कि सन्यस्त होना किसे कहते हैं मगर कवितायेँ मुझे याद दिलाती हैं कि कुदरत के किसी हिस्से का कुदरत के साथ निरपेक्ष जीवन जीना. कुदरत के सब सजीव और निर्जीव तत्वों को उनके पूरे विस्तार और अस्तित्व के साथ बिना छेड़ के रख देना ही सन्यस्त होना है. सन्यस्त होना इस तरह भी है कि कविता कहती है- हम किसी मुहावरे की तरह लौटते हैं घर. दरअसल खुद को मुहावरे की तरह देखना उस बात की ओर इशारा है कि ज़िन्दगी किस उलटी उड़ान और उसकी लौट का नाम है. छीज के विपरीत की वह आशा जो जानती है कि ज़िन्दगी गुज़र रही है मगर फिर भी है. अजंता देव की कवितायेँ कहती हैं कि परलोक में हमारी प्रतीक्षा में होने चाहिए बहुत से मित्र और परिजन कि विगत चालीस सालों में बिछड गए हैं, बेहिसाब. इसे कविता में कहा जाता है ऐसे ही परलोक में महफ़िल.
उन दिनों मेरी उम्र पच्चीस साल थी. उन दिनों अजंता देव की कविताओं की उम्र नामालूम थी. उनको कहीं सुनते हुए लगता था कि कोई बात है जो सुनी जाये दोबारा. उन दिनों किसी कविता को दोबारा सुनने का विचार एक खास आशा से भर देता था. मैं अजंता जी से इस बार पुस्तक मेले में क्षण भर को मिला. मैंने उनको पाया वैसा ही जैसा वे रेगिस्तान के उस कस्बे में कभी दिखीं थी, जहाँ मैं रहता हूँ. उसी कस्बे में बनी कुछ सरकारी दो मंजिला मकानों की छत पर एक यायावर कवि के सानिध्य में उनका रचनाकर्म सबसे सघन और दुरूह समय को रेखांकित करता होगा. ये मेरा एक अनुमान भर है. इसलिए कि घोड़े और उनके आंसू तब तक अनचीन्हे हैं जब तक की उनको जी न लिया जाये. ये वे दो लोग ही समझ सकते हैं. चेखव की तरह मुझे समझ नहीं है मगर मैं ये जानता हूँ कि समर्पण ही सबसे बड़ा साहस है. इसे कायरता समझने वालों के लिए कविता की पैदाईश नहीं हुई है.
घोड़े की आँखों में आंसू कविता संग्रह में एक कविता है बहुत दूर बाड़मेर. कवयित्री ने दुनिया के अनेक रास्तों पर चलते हुए भी बचाकर रखी बाड़मेर की याद. इस कविता में रेगिस्तान कंकालों के पार गुज़रता है सन्यस्त विद्वान की तरह. रेत का आदमी धोरों की उपत्यकाओं में चलता है, वैतरणी पार उतरता हुआ सा. जैसा मैं अक्सर कहता हूँ कि ज़िंदगी तुम्हारा खूब शुक्रिया इस रेत के लिए इस रेत से प्रेम करने वालों के लिए. घोड़े जो अक्सर रेगिस्तान में रोते भी हैं तो कौन देख पाता है उनके आंसू. मैं दुनियाभर के घोड़ों की स्मृति से गुज़रता हूँ और पाता हूँ कि रेगिस्तान के घोड़े जो मालाणी के घोड़े कहे जाते हैं, अच्छे घुडसवारों को खूब पसंद हैं. जैसे हर किसी को पसंद होती है अच्छी ज़िन्दगी मगर हर कोई नहीं समझता अच्छी ज़िन्दगी के दुखों को.
घोड़े की आँखों में आंसू कविता संग्रह में एक कविता है बहुत दूर बाड़मेर. कवयित्री ने दुनिया के अनेक रास्तों पर चलते हुए भी बचाकर रखी बाड़मेर की याद. इस कविता में रेगिस्तान कंकालों के पार गुज़रता है सन्यस्त विद्वान की तरह. रेत का आदमी धोरों की उपत्यकाओं में चलता है, वैतरणी पार उतरता हुआ सा. जैसा मैं अक्सर कहता हूँ कि ज़िंदगी तुम्हारा खूब शुक्रिया इस रेत के लिए इस रेत से प्रेम करने वालों के लिए. घोड़े जो अक्सर रेगिस्तान में रोते भी हैं तो कौन देख पाता है उनके आंसू. मैं दुनियाभर के घोड़ों की स्मृति से गुज़रता हूँ और पाता हूँ कि रेगिस्तान के घोड़े जो मालाणी के घोड़े कहे जाते हैं, अच्छे घुडसवारों को खूब पसंद हैं. जैसे हर किसी को पसंद होती है अच्छी ज़िन्दगी मगर हर कोई नहीं समझता अच्छी ज़िन्दगी के दुखों को.