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कहने की कला

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हेलेन केलर की एक कहानी ‘द फ़्रोस्ट किंग’ अंध विद्यालय की पत्रिका में प्रकाशित हुई। इसके बाद एक प्रतिष्ठित पत्रिका ने इसे प्रकाशित किया। पाठकों का इसकी ओर ध्यान गया तो मालूम हुआ, ये कहानी मारग्रेट कैनबी की कहानी ‘फ़्रोस्ट फैरीज़’ से मिलती जुलती थी। हेलेन केलर की उम्र ग्यारह बरस थी। वे देखने में असमर्थ थी। मिस सुल्लीवन उनको प्रकृति के बारे में बताती थी। सुल्लीवन की भाषा और प्रस्तुतीकरण में अपने पढे हुए के प्रभाव रहे होंगे। लेकिन उन सुनी गई बातों या जिस भी तरह प्रकृति को समझा गया था, का असर लेखन में आया। लेकिन उस कहानी में अन्य रचना से समानता थी। साहित्यिक चोरी के बेहिसाब क़िस्से हैं। इनमें से अधिकतर पार्टनर, मित्र और सहकर्मियों के हैं। लेखकीय स्वभाव के दो व्यक्तियों के बीच हुई चर्चा, डायरी का आदान प्रदान और हस्तलिखित स्क्रिप्ट का थोड़े फेरबदल के साथ अपने नाम से प्रकाशन का सिलसिला अनवरत है। समाचार पत्रों में प्रकाशित रिपोर्ताज़ को उपन्यास के रूप में लिखकर प्रकाशित करवा लिए, शोध ग्रन्थों को कथा में रूपायित कर रचना के वास्तविक लेखक बन बैठे, फ़ीचर से यथावत भाषा और सामग्री चुरा के रचना को मौलिकता का

अलविदा 2023

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ये बरस बीत गया है। असंख्य परिवारों के लिए ये बरस कभी नहीं बीतेगा। ये सियाह छाया बनकर उनके जीते जी साथ चलता रहेगा। आज नव वर्ष की पूर्व संध्या पर उल्लास होगा, रोशनियां होगी, बधाइयां होगी हर कोई ये भूल जाएगा कि इस दुनिया में दो युद्ध चल रहे हैं। इन युद्धों में दुनिया के पांच छह लाख लोग मारे जा चुके हैं।  युद्ध के बारे में हीरोडोटस ने कहा कि शांति में पुत्र पिता का अंतिम संस्कार करते हैं और युद्ध में पिता पुत्रों का। इस बरस हमने मांओं, पिताओं और चाचा मौसियों की गोद में नन्हे बच्चों को पार्थिव देह देखी। ऐसे भी बच्चे देखे कि जिनका इस दुनिया में कोई नहीं बचा। वे अस्पताल में चिकित्सकों के सामने खून से सने हुए भय से कांप रहे थे।  जीवन जितना भयावह दिखा, उतनी भयावह तस्वीर कोई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कभी नहीं बना सकेगा। दुख, पीड़ा और भय से भरी तस्वीर केवल मनुष्य ही नफ़रत से रच सका है। नई दुनिया, नई तकनीक और नए भुलावों में जीने का समय है।  तकनीक मनुष्यता की उतनी ही मित्र हो सकती थी, जितनी की वह शत्रु बनी बैठी है। आकाश का सैन्यीकरण हो रहा है। जबकि इस बरस भूकंपों से दुनिया कांपती रही। कोई तकनीक काम नह

अलाव की रौशनी में

मुझे तुम्हारी हंसी पसन्द है  हंसी किसे पसन्द नहीं होती।  तुम में हर वो बात है  कि मैं पानी की तरह तुम पर गिरूं  और भाप की तरह उड़ जाऊं।  मगर हम एक शोरगर के बनाये  आसमानी फूल हैं  बारूद एक बार सुलगेगा और बुझ जाएगा।  इत्ती सी बात है। --- रेगिस्तान की पगडंडियों पर बहके बहके चलते हुए औचक तेज़ भागने लगे। शहरों को चीर कर गुज़रती रेलगाड़ी में सवार होकर दूर से दूर होते गए।  अजनबी रास्तों पर नई हथेली थामे, कभी बातों बातों में किसी पुरानी बात पर संजीदा होते। फिर से किसी के करीब नहीं होंगे का खुद याद दिलाते हुए अचानक मुस्कराने लगते। कि तुमसे नहीं मिले होते तो ये बातें किस से सुनते। इसलिए फिर फिर नए लोगों से मिलना।  फिर से दावत पर बुलाना मोहब्बत को और सटकर चलना। ठण्डी रात में अलाव जलाकर बैठना। देखना कि आग की लपटों की रौशनी में वह कितना सुंदर दिखता है।  शोरगर, तुम्हारा मन है। उसे बुझने मत देना। हर बार नए रंग का बनना और नए तरीके से बिखरना।  शुक्रिया।

कुछ देर कुछ न सोचें

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शरद पूर्णिमा आने को है। उसके साथ हेमंत ऋतु आएगी। सुबह का समय है। मैं खुले आंगन में बैठा हूं। बाखल में पुष्पों की सुवास है। दक्षिणी हवा के संग मादकता बिखर रही है। बहुत शांति है। गली में भी जाने किस कारण शोर का कारखाना बंद है।  अचानक याद आता है कि अपना स्वास्थ्य अच्छा हो तो सब भला लगता है। महीने भर से कफ और खांसी से कठिनाई खड़ी कर रखी थी। दिन रात एक से हो गए थे। थकान भरा बदन लिए कुछ काम करो कुछ सांस लो। जिस हाल में सोना उसी में जाग जाना। अजीब चक्र बन गया था। आज स्वास्थ्य भला लग रहा। अक्टूबर जब बीतने को होगा हल्की गुलाबी ठंड प्रारंभ हो जाएगी। अगले दो महीने में शिशिर ऋतु का आगमन होगा। तब ठंड होगी। गर्म कपड़े होंगे। इसी जगह बैठे हुए धूप की प्रतीक्षा होगी किंतु दोपहर तक थोड़ी सी कच्ची धूप मिलेगी।  हम अक्सर अकारण उलझ जाते हैं। समझते हैं कि ये आवश्यक कार्य है, इसे पूर्ण करके ही आराम करेंगे। वास्तव में ये एक जटिल फंदा होता है, जिसमें अपने दिन रात फंसा लेते हैं। जीवन है तो काम बने रहेंगे। सब काम कभी एक साथ पूरे नहीं किए जाएंगे। हर काम के बाद एक नया नया काम आ खड़ा होगा।  इसलिए थोड़ा समय प्रतिदिन

इट स्मेल्स हैप्पीनेस - अणु शक्ति सिंह

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सेवाप्रसाद सहज यौन इच्छाओं से भरा सरल व्यक्ति है। वह अभी तक कुंठित नहीं हुआ है। समाज के सबसे निचले पायदान के कार्य स्वच्छता का कार्मिक है। उसके लिए सुखी परिवार की सीमा उन परिवारों तक समाप्त हो जाती है, जहां वह कचरा उठाता है। उसकी पत्नी फूल बेचती है। फूल बांटने वालों के हाथों में खुशबू बची रह जाती है, उक्ति की तरह हर रात पत्नी महकती हुई मिलती है। वह उसकी प्रतीक्षा करता है। इस प्रतीक्षा में खुशबू भरी स्त्री के अतिरिक्त अनेक स्त्रियों की तस्वीरें हैं। उनकी देह और खुशबू के बारे में कल्पनाएं पंख लगाए उसके आसपास उड़ती रहती है। उन नाज़ुक पंखों की छुअन से वह अक्सर उत्तेजित महसूस करता है। सेवाप्रसाद की इन कल्पनाओं से उपजी हरकतों पर पत्नी कायदा भी बिठा देती है। कचरा जिस तरह सेवाप्रसाद को ऊब और उकताहट से भरता है, उसके उलट जिनके यहां कचरा बीनता है, उन लोगों के जीवन का सुख उसे इच्छाओं से भर देता है। वह उस जीवन में सेंध लगाना चाहता है। भीतर प्रवेश करके सुख को चिन्हित कर लेना चाहता है।  डिकोड करने की ये चाहना फलीभूत होती है। वह एक घर के खुले दरवाज़े के भीतर प्रवेश कर जाता है। वहां प्रथम दृष्टि एक सुघ

टाई बांधे हुए बकरी

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बाड़मेर रेलवे स्टेशन के क्रॉसिंग पर बहुत सारी सुंदर बकरियां फाटक खुलने का इंतज़ार कर रही थी। उनमें से एक के गले में टाई बांधी हुई थी।  सिरोही नस्ल की बकरियां थी। हालांकि थोड़ा बहुत संकर हो जाना भी आम बात है। बाड़मेर शहर में इस नस्ल की बकरियां तेलियों और पठानों के पास अधिक हैं। यहां का किसान समुदाय मारवाड़ी या जरखाना नस्ल की बकरियां पालना पसंद करते हैं।  बाड़मेर के किसान बकरी को दूध और बाकर माने उनके बालों के लिए पालते हैं। ये बकरियां दो से तीन लीटर दूध दे सकती हैं। इनके बाल ऊंट के बालों के साथ जिरोही माने चटाई बुनने में काम ले लिए जाते हैं। हालांकि बाकर अधिक होने से जिरोही चुभती है।  सिरोही नस्ल के बकरे का भार चालीस पचास किलो के आसपास होता है। बकरियां औसत तीस पैंतीस किलो होती हैं। इस नस्ल का पालन पोषण मीट के लिए अधिक किया जाता है।  बकरी के दूध को डेंगू रोगी के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। बाड़मेर में डेंगू के भयावह प्रकोप के समय दूध की कीमत अविश्वसनीय हो गई थी।  वैसे बकरी बहुत सुंदर जानवर है। ये काफी हठी स्वभाव का भी होता है। इसे पहाड़ों पर खड़ी चढ़ाई चढ़ने में कोई समस्या नह

टूटी हुई बिखरी हुई

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हाउ फार इज फार और ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउट दोनों प्राचीन कहन हैं। पहली दार्शनिकों और तर्क करने वालों को जितनी प्रिय है, उतनी ही कवियों और कथाकारों को भाती रही है। दूसरी कहन नष्ट हो चुकने के बाद बचे रहे भाव या अनुभूति को कहती है।  टूटी हुई बिखरी हुई शमशेर बहादुर सिंह जी की प्रसिद्ध कविता है। शमशेर बहादुर सिंह उर्दू और फारसी के विद्यार्थी थे आगे चलकर उन्होंने हिंदी पढ़ी थी। प्रगतिशील कविता के स्तंभ माने जाते हैं। उनकी छंदमुक्त कविता में मारक बिंब उपस्थित रहते हैं। प्रेम की कविता द्वारा अभिव्यक्ति में उनका सानी कोई नहीं है। कि वे अपनी विशिष्ट, सूक्ष्म रचनाधर्मिता से कम शब्दों में समूची बात समेट देते हैं।  इसी शीर्षक से इरफ़ान जी का ब्लॉग भी है। पता नहीं शमशेर उनको प्रिय रहे हैं या उन्होंने किसी और कारण से अपने ब्लॉग का शीर्षक ये चुना है।  पहले मानव कौल की किताब आई बहुत दूर कितना दूर होता है। अब उनकी नई किताब आ गई है, टूटी हुई बिखरी हुई। ये एक उपन्यास है। वैसे मानव कौल के एक उपन्यास का शीर्षक तितली है। जयशंकर प्रसाद जी के दूसरे उपन्यास का शीर्षक भी तितली था। ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउ

समय के साखी

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कविताओं से मोहभंग है। फिर भी कविता वह जगह है, जहाँ मन को आश्रय मिलता है। या जैसे घर लौट आए हों।  कविता पढ़ने के अपने दुख हैं। उनका कुछ नहीं किया जा सकता। कि आप कविता पढ़ने जाते हैं और हताश होकर लौटते हैं।  इसलिए हर दो तीन बरस में देख आता हूं कि युवाओं ने कविता के लोहे को कितना तपाया है। इसी देखने में समय के साखी का अंक ऑर्डर किया था।  बहुत बरस बाद मैंने कविताएं पढ़ीं। पढ़कर सुख पाया। कुछ कविताएं परमानंद रहीं।  जमुना बीनी की कविता लौटने के इंतज़ार में, प्रतिभा गोटीवाले की सरस्वती पर माल्यार्पण, नेहा नरूका की कुलताबाई, विगाह वैभव की ईश्वर को किसान होना चाहिए, ज्योति रीता की प्रिय विनोदिनी, सौम्य मालवीय की कविता तिरंगायन और पार्वती तिर्की की सोसो बंगला।  पार्वती तिर्की की एक कविता चुनना मेरे लिए कठिन था कि सभी कविताएं मैंने कई बार पढ़ीं। सब मन को छूने वाली कविताएं हैं। आवश्यक कविताएं। इस अंक को मैं प्रसन्नता के अतिरेक में पढ़ रहा हूँ। अभी पूरा पढ़ा नहीं है। जो पन्ना खुलता है, उसे दोबारा तिबारा पढ़ने लगता हूँ। 

प्रतीक्षा के बारे में

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मैं प्रतीक्षा में था। हालांकि जीवन बीत चुका है और कोई प्रतीक्षा कभी गहरी मित्र नहीं हुई।  इसी प्रतीक्षा में आस पास को देखता रहता हूँ । चीज़ें कैसी हैं। उनका विन्यास कैसा है। रंग रूप किस तरह खिला बुझा है। लोग क्या कर रहे हैं। वे कैसे मनोभावों से घिरे हैं और कितने मनोभाव पढ़े जा सकते हैं।  इस देखने को अकसर शब्दों में उतार लेता हूँ। कि शब्दों से थोड़ी सी मित्रता है। किसी बात को ठीक ठीक कह देने लायक बना देते हैं। कभी कभी मैं मोबाइल से या कैमरा से तस्वीरें खींच लेता हूँ।  वैसे तस्वीर को न उतारा जा सकता है, न ही खींचा। कहां से उतारा जाता है। क्या तस्वीर कहीं ऊपर रखी है। क्या तस्वीर किसी हाथी-घोड़े पर चढ़ी है। और खींचना कैसे होता है। कोई फंदा डालकर या रंढू से बांधकर खींचा जाता है? हालांकि वह दूर का दृश्य है। उसे बिना पास गए सहेज लिया गया है लेकिन खींचा कैसे ये मुझे समझ नहीं आता।  फिर भी परसों शाम बाड़मेर के विवेकानंद सर्कल पर प्रतीक्षा में खड़े हुए मैंने एक तस्वीर ली। मैं वैसा ही छायाकार हूँ, जैसा कि संयोग से लेखक या रेडियो पर बोलने का काम करने वाला हूँ। कुछ परिस्थितियां ही होती हैं।  इसी परि

सुलगते जाने को

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हम अतीत में क्या खोज सकते हैं। भविष्य को कितना जान सकते हैं। वर्तमान को कितना देख सकते हैं। ये सोचते हुए एक पुरानी तस्वीर देखता हूं।   क्या मैंने इस तस्वीर को खोजा है या ये तस्वीर कुछ याद दिलाने को सामने चली आई है। कि इस लम्हे तुम कितना इस लम्हे को देख रहे थे। इस लम्हे से पीछे कितनी दूर तक सोचा था। आगे कभी इस लम्हे को कैसे याद करोगे।  शायद कुछ भी नहीं।  यादें एब्सट्रैक्ट हैं। नंगी हैं। हंसी और नमी से भरी हैं। उनमें तम्बाकू की गंध है। ऊंट की पीठ से उतारी काठी जैसी महक से भरी है। बहुत तेज़ भाग रही हड़बड़ी वाली किसी मशीन के अचानक रुक जाने से हुए घर्षण की जलती हुई खुशबू है।  रेड कार्पेट, टीवी शो, भव्य सम्मेलनों, प्रतिष्ठित करने को चमकते मोमेंटो, भीड़ में अंगुलियों के छू लेने भर की कामना से उपजा सुख, कहीं अपने नाम का शोर सुनने को चाह में हांफते हुए कुछ न कुछ करते जाने से बहुत परे की बात है।  मन किसी के साथ सुलगते जाने और फिर हवा में चुपचाप गुम हो जाने का मन है। उसे अतीत और भविष्य से क्या वास्ता होगा। वह बस वर्तमान के बारे में क्षणिक सोचता है कि काश तुम होते। जानता है कि नहीं हो।  जब जो नहीं

शर्ट का तीसरा बटन

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एक ही ख़त में सारा कुछ लिखने की ज़रूरत नहीं है। ~ मानव कौल  पिछली गर्मियों में हिंदयुग्म के दफ़्तर से ये उपन्यास ले आया था। किताबें आधी आधी बंट जाती हैं। कुछ जयपुर और कुछ बाड़मेर वाले घर के हिस्से आती हैं। कि कहीं भी रहो, फुरसत में कुछ पढ़ सको। मानव को पढ़ना एक अलग अनुभूति है। वैसे हर लेखक की भाषा और कथानक के अलग जींस होते हैं। किंतु कुछ के हमारे मन से मिलते हैं।  मानव की कहानियां जिसने पढ़ी हैं और भली लगी। उनके लिए ये एक सुंदर उपन्यास है। प्रेम कबूतर कहानी कैशोर्य के प्रेम की सरलता को कहती है। उससे आगे इस कथा के किशोरवय पात्र जीवन की कठोरता से दो चार होते हैं। वे माँ, पिता, नाना, नानी के होने को एक सम्बंध से आगे मनुष्य के रूप में पहचानने लगते हैं। ये सुंदर बात है। अच्छा लगा। धन्यवाद मानव।