July 28, 2009

दो ढक्कन


मेरे सब दोस्तों में बाबू लाल एक मात्र सच्चा शराबी था उसने ब्रांड, स्थान और शराबियों में किसी भी प्रकार का भेदभाव किए बिना मयकशी को सुन्दरता प्रदान की। उसका दिल प्यार से भरा था और वह एक पैग से ही छलकने लग जाए इतना हल्का भी नहीं था। मैं हमेशा अपनी शाम उसके साथ ही बिताना चाहता था किंतु सच्चा शराबी एक ही बंधन से बंधा होता है शराब के... उसके लिए बाक़ी सब चीजें होती ही नहीं और होती है तो कहीं रेत के टिब्बों में किसी हरी झाड़ी के समान विरली। पीने और ना पीने वाले तमाम शायरों के शेर में मुझे उसी का हुस्न जगमगाता दिखाई पड़ता था। हम बीस साल पुराने पियक्कडों में वह सबसे अधिक लोकप्रिय था। मेरे सिवा पूरी टीम के समक्ष संविधान की अनिवार्य शर्तें लागू थी वे कभी बच्चे का जन्म दिन, कभी रीलिविंग पार्टी, कभी कभी किसी राष्ट्रीय आपदा पर गंभीर चर्चा के बहाने अपनी बीवियों को पटाते और फ़िर पीने आते थे। उनके लिए वो दिन अत्यधिक उत्साह से भरा होता था जबकि मैं और बीएल [बाबू लाल] शराब के हुस्न के नए रंग तलाशते थे।

हमारे ढक्कन अभियंता साहब [वे एक पैग को ढक्कन कहते थे और पार्टी में आते ही दो ढक्कन लेने का ऐलान करने के बाद साकी की सामर्थ्य के अनुसार पीते और उसे कभी निराश नहीं करते थे] रोहतक गए हुए थे और उन्होंने बीएल को वहीं से फोन करके बता दिया था कि आज रात साढ़े ग्यारह बजे मैं रेल से पहुँच रहा हूँ और दो ढक्कन तुम्हारे साथ लूँगा। बीएल के साथ हुए इस करार का मुझे ज्ञान था और मैं रात नौ बजे तक इंतजार करने के बाद बालकनी में अपनी बोतल निकल लाया और पहला पैग बनाया ही था कि दूर से हुस्न परी आती दिखाई दी और उसके पीछे भागू भी लगा हुआ सा दिखाई दिया।

दोस्तों के आते ही बालकनी से मयखाना विस्थापित हो कर मेरे सरकारी आवास की बैठक में शिफ्ट हो गया। भागू के चूँकि तापमापी लगा हुआ था तो उसे मैंने आशंकित निगाहों से देखा। इस तापमापी के बारे में मैंने पिछली पोस्ट में लिखा था "बिना बताये शराब छुड़ाए... वाला " भागू ने तुंरत बता दिया कि आज गंगानगर से ही गाड़ी हाईड्रोलिक लेके चल रही है चिंता की कोई बात नहीं. दो घूँट लिए ही थे कि डोरबेल बज उठी। हमेशा दरवाजा मैं ही खोलता था क्योंकि किसी के घर से बुलावा आने पर वो यहाँ है या नहीं और है तो कब तक आएगा का जवाब देना होता था। दरवाजे पर सोनी था, आंखों में शरारत चमक रही थी मैंने समझा लिया आज की रात बहुत छोटी होने वाली है।

रे भेन के बड़ी जम रही है इधर... उसने अन्दर आते ही अपना पसंदीदा वाक्य उछाला और चाकू ढूँढने लगा। रे सालों बिना सलाद के ना पीयो कर बिल्डिंग कंडम हो जावेगी जल्दी है। सोनी का पसंदीदा काम था सलाद काटना और उसमे ' साळी कुछ वैरायटी भी होनी चाये कि नहीं वाला अंदाज भी।

रोहतक से आने वाली रेल ने दस मिनट की देरी कर विश्वास दिलाया कि समय की कीमत हमेशा बनी रहेगी लेकिन ढक्कन साहब ने रिक्शे वाले का पिछवाडा थपथपा कर लेट निकालने का अपूर्व कार्य कर दिखाया डोरबेल बजी। ढक्कन साहब अन्दर कर इस तरह बैठे जैसे घायल बाज को ऊँचे पेड़ डाल मिल गयी हो।

हम देसी पी रहे थे सोनी और ढक्कन साहब ने अंग्रेजी से गलबहियां डाल रखी थी उनका दिल हमारे जितना बड़ा नहीं था हम सब को निरपेक्ष भाव से देखते थे। सबसे मुहब्बत थी, छोटी-बड़ी, जवान-बुढ़िया और विवाहित-कुंआरी का भेद अपराध तुल्य था शराब सिर्फ़ शराब थी।

July 11, 2009

मौज लेण की टेम मतबल आदमी के साथ आदमी फ्री

रे लंगङों थम बैठे हो यहाँ
इब तो मौज लेण की टेम आई है
ल्या रे बाबू मेरे भी ढक्कन भर पूरी तो....
सहायक अभियंता साब टांग चढाये मुर्गे से हो के आराम की मुद्रा में गए पीण आले सब बोतल ने देखते से आण आले टेम में कित्ते बजट की और जरूरत का हिसाब करण लगे जद के भागू ने अपणे कान पर हाथ धर के पता लगाया की कित्ती चढी है मरजाणी घराली ने 'बिना बताये शराब छुड़ाये' वाले हकीम के झांसे में आके सात दिन दवा दे दी
उसकी तो भेन के... आठवें दिन पता चला कि बरसों का खेलाड़ी भागू दो पैग में फ़ैल हो गया, गरीब की गधी लुटगी, इससे तो मर जाणा भला, भागू दो पैग अन्दर ठूंसता तो तीन बाहर गिरते, पानीपत से बड़ी लड़ाई चली कई दिनां के बाद भागू ने अपने जाट दिमाग का काम लिया फेर पता चला के बिना बताये दवाई काम करगी।

कान
धीरे धीरे लाल हो रहे थे मतबल के आज चढ़नी है।

चुस्की
दर चुस्की... साब बड़े मजे ले रया था के आँख चमक पड़ी।

रे
भगवान की लीला न्यारी पण बी से भी "न्याव" न्यारा से भाई आज तो मौज करा दी, के फैसला सुनाया है इब कोई भी किसी की ले सकता है बशर्ते "देणी है के थाणे जाणा है" की नीयत ना राखो मतबल के भाई "तूं राजी है तो भी लूंगा, नहीं है तो भी लूँगा" के मामलों को छोड़ कर कोई करो कहीं करो छूट मिल गई है।

सब
भेन के एक ही साँस में अपणे अपणे गीलास खाली कर गए, भागू की चढ़ने वाली उतरगी, कूद के बोल्या साब मतबल तो बताओ केहता सा अपणी पेंट की जिप ठीक करण लाग्या।

कमीने तो सब और इनमे सबसे भडा भागू बाक़ी सब ने ते गीलास खाली करे पण ये तो बिना बात सुने ही गधी चढ़ग्या ।

एक एक ढक्कन और डालो फेर सुनो लंगडों।

बाईबील के टेम से माईकिल के टेम तक यही झगडा चाल रया था के आदमी आदमी, की ले तो गुनाह है के नई ? इब आपणे देश में भी बात साफ़ हूगी के इब मरद के ऊपर दूजा मरद होवे तो उसको अपराध ना समझा जाके मातर मुर्गे के ऊपर मुर्गा समझा जावे, थम चूतियों को याद नहीं राजकपूर ने इक गाणा फिलम में धरा था, तीतर के आगे दो तीतर, तीतर के पीछे दो तीतर... इब समझे

सोनी साला दांत काढ के बोल्या थम सब न्यूं ही गांडू होए जा रए हो साब वे तीतर आगे पीछे थे ऊपर नीचे नहीं।
साब ने बात खटक गी " रे लंगड़ तूं मेरे से राजी हो जा कल फेर बाबू बुला के लावेगा पुलीस फेर न्याव केवेगा की पुलीस ने अत्याचार करा है, दो पीयार के पंछियों को अपराधी ठहराए जाने का ये मामला ढाई ढूस किया जाता है और सलाह दी जाती है के आयन्दा ऐसे काम में खलल डालने और हतोत्साहित करणे पे कड़ी सजा दी जावेगी "
न्यूं तो रगडा पड़ जावेगा भागू ने घर जाणा नी और भाभी ने किसी को घर आन देणा नी।

रे सर फुटवल्ल हूगी, भागू ने जूत की धर दी।

ईच
बीच बचाव में घणा टेम नी लाग्या गीलास की सौगंध पे पाल्टी फेर जमगी ...

इब आंख्यां तक आगी तो सोनी संजीदा होके बोल्या साब है तो ग़लत, समाज भ्रष्ट हो जावेगा लड़के बरबाद हो जावेंगे। इस्सका कोई फायदा नई।

सुण,
काल तक रामगोपाल्यो अर रघुवीरियो साथ-साथ ड्यूटी के लिए भेन के युनियन बाजी करते थे। आज मैंने पूछा के भाई तुम भी तो दोनों उस तरीके के तो नहीं हो, मरगे साले शरम से, इब इस जीरो हेड पे ड्यूटी का कोई संकट नहीं होगा, थम समझते हो के न्याव करण आले समझते नहीं।

भागू एस ज्ञान भरी बात के पूरा होने से पहले ही लुढ़क ग्या था सोनी ने घर की याद आगी तो उठ गया उसके बाद साब अर बाबू निकल पड़े छिन्न मस्ता के दरवाजे, रे ग़लत ना समझियो कोई
सिर्फ़ पीण वास्ते...ई ?


अलाव की रौशनी में

मुझे तुम्हारी हंसी पसन्द है  हंसी किसे पसन्द नहीं होती।  तुम में हर वो बात है  कि मैं पानी की तरह तुम पर गिरूं  और भाप की तरह उड़ जाऊं।  मगर ...