October 25, 2015

तुम जो मिलोगे इस बार तो



उदासी के झोंके ने 
गिरा दिया शाख से पत्ता 

ज़िंदगी को इतना भी यूनिक क्यों होना चाहिए कि जीया हुआ लम्हा बस एक ही बार के लिए हो. कुछ क्लोन होने चाहिए कि हम उसी लम्हे को फिर से जी सकें. एक याद का मौसम जब भी छू ले, उसी पल कोई दरवाज़ा बना लें. दरवाज़े के पीछे एक छुअन हो. एक लरज़िश हो. एक धड़क हो. इस तरह याद जब उदासी और नया इंतज़ार घोले, उससे पहले हम उसी लम्हे को फिर से बुला लें. 

जिस तरह गिरते हुए पत्ते ख़ुद को धरती को सौंप देते हैं, उसी तरह कभी हम ख़ुद को प्रेम को सौंप दें. प्रेम लुहार की तरह हमें लाल आंच में तपाकर बना देगा कोमल. किसी बुनकर की तरह बुन देगा एकसार. किसी राजमिस्त्री की तरह चुन देगा भव्य. 

वह जो दरवाज़े के पीछे अँगुलियों के रास्ते बदन में उतर आई लरज़िश थी. वह उसी एक पल के लिए न थी. उसका काम बस उतना सा ही न था. 

तुम जो मिलोगे इस बार तो पूछेंगे ये हवा क्या है, उदासी कैसी है और तन्हाई कब तक है? 

October 20, 2015

तेरे बाद की रह जाणा

मौसम ऐसा है कि कमरे अंदर ठंडे और बाहर गरम। प्लास्टिक के सफ़ेद छोटे कप चाय से भरे हुए। नया हारमोनियम।। जमील बाजा के बारे में कुछ और बताते हुए गुनगुनाना शुरू करते हैं। तेरे बाद की रह जाणा... मैं कहता हूँ गाते जाइए। जमील मुस्कुराते हुए स्वरपटल पर अंगुलियां रखे हुए अपनी आँखें मेरी आँखों में उलझा देते हैं। मैं डूबता जाता हूँ। सचमुच तुम्हारे बाद जीवन में क्या बचा रह जायेगा। उदासी, तन्हाई और बेकसी। आकाशवाणी के विजिटर रूम में ढोलक की हलकी थाप से सजी संगत और सिंधी-पंजाबी के मिले जुले मिसरों का मुखड़ा, गहरी टीस से भरता रहता है। 

जमील अपने कुर्ते के कॉलर ठीक कर एक लम्बे सूती अजरक प्रिंट के अंगोछे को गले में डाल कर बिना सहारा लिए आँगन पर बैठे हैं। ग़फ़ूर सोफे पर बैठे हैं। मैं अधलेटा सोफे का सहारा लिए सामने खिड़की की ग्रिल पर पाँव रखे हुए। मैं कहता हूँ ये हारमोनियम कितने का आया? ग़फ़ूर कहते हैं कल ही अट्ठारह हज़ार में लिया। मैंने पूछा कलकत्ता का है? बोले- नहीं! पंजाब की बॉडी है और सुर... मैं कहीं खो गया कि ये न सुन पाया सुर कहाँ के हैं। मेरा मन उकस रहा था कि कहूँ कोई बिछोड़ा सुना दो। ऐसा विरह गीत की आँख भर आये। 

सिगरेट का धुंआ, सुरों की गमक फिर भी आबाद खालीपन। 

वे कलाकार अपने साज़ कसते रहते हैं। थाप लगाकर देखते हैं। मैं थके कदम बाहर आ जाता हूँ। एक कमायचा बजाने वाला नहीं आया है। उसका इंतज़ार है। स्टूडियो बिल्डिंग के साये में खड़े हुए देखता हूँ बड़ी भूरी चिड़ियां अपने साथ की चिड़िया को कुछ कह रही है। जाने क्या? मुझे लगा कि वो दो ही बातें समझा रही है। पहली बात बुद्ध की- ये संसार दुखों की खान है। दूसरी बात-सन्यास सुख का पड़ोसी है। अगली चिड़िया शायद कोई शंका रखती थी तो उसने कुछ पुछा। बड़ी भूरी चिड़िया ने अपने परों को फैलाया और कहा चलो। वे मेरे पास से उड़कर नीम पर चली गयी। 

मुझे साँस नहीं आ रही। कनपटी से पसीना आ रहा है। मैं उसे बिना छुए गरदन के रास्ते नीचे उतरने देता हूँ। मालूम है क्यों? इसलिए कि मेरे दिमाग में एक सी सा झूला है। नष्टोमोह की कामना है और कुछ नहीं जाने देने का वादा भी है। मैन गेट के पास से वॉयलिन कवर पीठ पर लटकाये हुए एक आर्टिस्ट आता है। मैं स्टील के पाइप से सहारा हटाकर अंदर की ओर चल देता हूँ। साफ पानी की मशीन के पास खड़ा होकर एक पन्नी से छोटी नीली गोली निकालता हूँ और गटक जाता हूँ। दुनिया के उस पहले आदमी या औरत के नाम जो पहली बार किसी को छोड़कर गया था।

बाजे की बॉडी तो पंजाब की है पर सुर कहाँ के हैं?

अलाव की रौशनी में

मुझे तुम्हारी हंसी पसन्द है  हंसी किसे पसन्द नहीं होती।  तुम में हर वो बात है  कि मैं पानी की तरह तुम पर गिरूं  और भाप की तरह उड़ जाऊं।  मगर ...