कभी जब मन सौ घोड़ों पर सवार होता है, तब कोई सिरा पकड़ नहीं आता। कभी लाख चिंताओं की धुंध में मालूम नहीं होता कि घोड़े किस तरफ़ भाग गए हैं। कभी हम अचानक पाते हैं कि सब ठीक है। मन के अस्तबल में शांति पसरी है। किसी पुराने प्रेम को दयालुता के साथ स्मृत करते हैं। अपने तमाम टूटे-बिखरे, बचे-लुटे संबंधों को दोषमुक्त कर देते हैं। उस समय हम अपने बहुत पुराने वर्शन तक पहुँच जाते हैं। मैंने कई वर्षों के पश्चात कल दो पंक्तियाँ लिखीं। याद आया कि मेरा ऐसा लिखना रोज़ की बात थी। मैं बातें बेवजह लिखकर प्रसन्न रहता था। कल पुल पर खड़े लैम्पपोस्ट को देखता रहा। लैम्पपोस्ट के बारे में कुछ बेवजह की बातें। ••• पतंगों के लिए जल रहे थे कि राहगीरों के लिए लैंपपोस्ट देखकर मालूम न होता था। हमें किसका इंतज़ार है, ये भी ख़बर न थी। ••• कभी-कभी उनके पास रुककर हमने इंतज़ार किया। बिना रोशनी के लैंपपोस्ट भी अनकहे ठिकाने थे। ••• समय के साथ अकसर लैम्पपोस्ट उखड़ कर गिर जाते हैं मगर जाने कैसे कोई एक बचा रह जाता है। ठीक ऐसे तुम्हारे मेरे बारे में ...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]