देख कर उस हसीं पैकर को...

वे छोटे छोटे प्यार याद रखने लायक नहीं होते है. उनका आगमन अचानक हुआ करता है. जीवन में अनमनी सी हताशा, भारीपन और बोझिल होते हुए पलों में कभी प्यार करने के ख़याल मात्र से रोयें मुस्कुराने लगते हैं. रत्नजड़ित मुकुट की जगह मोरपंख जैसे छोटे और अनिवार्य प्यार की तुलना नदी के रंगीन पेबल्स से की जा सकती है. उनका आकर और रंग रूप हमें लुभाता है. उनमे एक और बड़ी खूबी होती है कि वे बहुत नए होते हैं, सर्वथा नए. चूँकि उस नन्हे प्यार की अधिक उम्र नहीं होती इसलिए छीजत अप्रत्याशित हुआ करती है फिर भी कुछ बचा रहा जाता है. उसको याद करते हुए हम अपनी भोहों को थोड़ा नीचे करते हुए और होठों के किनारों को अपनी ठुड्डी की ओर खींचते हुए सोचते हैं कि उसका नाम क्या था ?

इस तरह कितने ही प्यार खो जाते हैं. इस नुकसान पर आप भी खुश हो सकते हैं कि शरारत भरी आँखों से देखा, मुस्कुराये और भूल गए. इससे भी अधिक हुआ तो उसकी नर्म हथेली को कुछ एक्स्ट्रा सोफ्टनेस से और थोड़ी अधिक देर के लिए थामा. वक़्त ने साथ दिया तो ये भी कह दिया कि आप बहुत खूब हैं. इसे नासमझ लोगों का प्यार कहा जाता है कि इसकी अनुभूति क्षणभंगुर होने से बस थोड़ी सी अधिक होती है. ये संक्षिप्त प्रेम ओस की बूंदों की तरह असर दिखाते है. घड़ी भर को लगता है, जीवन कितना भीना और मनभावन है लेकिन पास ही धूप इंतजार में होती है कि आपका अपना मौसम लौटा लाये.

उन दिनों मेरी उम्र कोई अट्ठाईस साल थी. केन्द्रीय विद्यालय में रीजनल कल्चरल मीट थी और सांस्कृतिक प्रतियोगिता के निर्णायक के रूप में मुझे आमंत्रित किया था. साँझ ढले आरम्भ हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्ष थी एयर फ़ोर्स के बेस कमांडर की वाइफ मिसेज नरुका. शायद मैंने उनका सरनेम ठीक से याद कर लिया है. आयोजन के समाप्त होने के बाद वे मुझे जिज्ञासा भरी निगाहों से अविराम देख रही थी. डिनर हाल में वे मेरे पास आई और अभिवादन किया. मेरे चेहरे की ओर देखते हुए कहने लगी. "मैंने आपको कहीं देखा है. मैं पिछले दो घंटे से आपको देखते हुए रीकग्नाईज करने की कोशिश कर रही हूँ." उस भद्र महिला ने सुरुचिपूर्ण वस्त्र धारण किये हुए थे और भाषा मृदुल थी. हमारी आरंभिक बातचीत का हासिल ये था कि हम दोनों ने एक दूसरे को पहली बार देखा था. उन्होंने मेरे पास बैठ कर डिनर लिया. इस दौरान भी वे बात करती रही. विद्यालय प्रबंधन जब हमें विदा कर रहा था तब उन्होंने बेहद आत्मीयता से कहा "मुझे लगा कि मैं आपको बहुत समय से जानती हूँ."

वहां से लौटते समय बहुत से ख़याल मंडराते रहे. जैसे कि उन्हें कोई दूर के रिश्ते का छोटा भाई याद आया होगा या कोई पांच सात जमात पीछे पढने वाला लड़का स्मृतियों में बचा रहा होगा. मैं खुश था. इसलिए कि जब आपकी उपस्थिति से किसी को अपना सा फील होता है, उस पल आप आनंद से भरने लगते हैं. मैं इसे एक कम अवधि का छोटा प्रेम समझता हूँ. ऐसे असंख्य किस्से मेरे ज़ेहन में हैं. वे किस्से एक अल्पकालीन अनुभव के प्रतिनिधि हैं किन्तु वे कभी अवधिपार यानि एक्सपायर नहीं होंगे. वे इतने निर्मल हैं कि मैं उनकी वासना भरी जुगाली नहीं कर सकता हूँ. इसी तरह के कुछ प्यार जब साल भर से अधिक लम्बे हो जाते हैं तो आप आशंकाओं से घिरने लगते हैं. कहीं मुझे इसकी आदत न हो जाये, कहीं ज़िन्दगी वे चित्र न उकेरने लगें जिनसे हम हमेशा डरते हैं.

मुझे नहीं मालूम कि आपने कितनों से कहा होगा कि मैं तुमसे प्रेम करता हूँ. मैंने ऐसा उस हर एक को कहा है, जिसने ज़िन्दगी के रूखे कवच पर अपने नाजुक अहसासों को रखा हुआ है. विज्ञान के रहस्यों का गंभीर अध्ययन करने वाले फ्रिजेश कारिंथी हास्यकार, दर्शनशास्त्री और मनोवैज्ञानिक थे. उनकी एक बड़ी क्लिष्ट कहानी है, एकतरफ़ा प्यार. इस कथा का मुख्य पात्र जिससे प्रेम करता है उससे विवाहित है. उसके साथ रहते हुए भी उससे दूर है. वह उसे प्रेम करना चाहता है किन्तु समझता है कि वासना की उपस्थिति ने उसे निम्न श्रेणी में धकेल दिया है. वह चाहता है कि अपनी पत्नी से कहे "मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ" लेकिन वह ऐसा कह नहीं पाता और अपने मित्र को बताता है कि वह उससे सच्चा प्यार उसकी मृत्यु के बाद ही कर पायेगा.

फ्रिजेश कारिंथी ने पहला विवाह एक अभिनेत्री एटेल जुडिक से किया था और उसका असामयिक निधन हो गया था. इसके पश्चात् उन्होंने मनोचिकित्सक अर्नका बोहम से विवाह किया. उनकी इस कहानी के अनुरूप ही उनका दाम्पत्य जीवन भी देखा जा सकता है. नायक के मन के छद्म अवतार का ये कहना कि वह अपनी पत्नी से सच्चा प्रेम उसकी मृत्यु के बाद कर ही कर पायेगा. यह विवशता वास्तव में खोयी हुई पत्नी से अगाध प्रेम की रूपक है. फ्रिजेश का प्रेम तमाम जटिलताओं के बाद भी एकाग्र है. वहां पत्नी होने या पति होने से कोई फर्क नहीं है.

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