इस वक़्त चाँद गायब है


मैं उनींदा हूँ। मैं सपने में हूँ। मैं जागने से पहले के लम्हे की गिरफ़्त में हूँ। मैं जाने किधर हूँ। देखूँ तो पाता हूँ कि मैं अपने घर की छत पर बैठा हूँ। हवा में हल्की ठंड है। पहाड़ पर एक प्रार्थना की तरह प्रकाश विस्तार पा रहा है। मैं कहता हूँ, ओ प्रकाश, मुझ तक भी आओ। मेरे पास कुछ नहीं आता इसलिए एक नयी कामना करता हूँ। मुझे ज्यादा ठंडी हवा का स्पर्श चाहिए। मुझे आइस क्यूब चाहिए। मैं अपने भीतर की तनहाई को बर्फ के साथ जमा देना चाहता हूँ। मेरी तनहाई एक आग है। मेरी चाह है कि आग पानी में क़ैद हो जाए। कई रात पहले एक तारा टूटा। उसी रात मैंने उसे देखा। उसी वक़्त मैंने चाहा कि एक नाम भूल जाऊँ। किसी ने कुछ नहीं कहा भूलने या याद रखने के बारे में, इसलिए मैंने खुद से कहा कि इंतज़ार करो। एक दिन सबकी टूटने की बारी आती है। एक दिन सबके दरवाजे से झांक रही होती है महबूब की आँखें। उस एक आखिरी दिन के लिए, कई रातों पहले वाली तारा टूटने वाली रात को देखने के लिए, तुम रख देना अपनी आत्मा मेरी आँखों के सामने.... 

इस वक़्त तुम जाने कहाँ हो
किस जगह रखे हैं तुम्हारे पाँव?
मगर इस याद का किस्सा शुरू होता है
उस पल से
जब शैतान के पाँवों पर खड़े होकर
तुमने उसकी आँखों में बुना ख़्वाहिशों का घोंसला
और लचक गयी ज़िंदगी की डाल।

ये मुमकिन नहीं कि मिटाया जा सके, वाटर कलर को
हालांकि एक दिन सूख जाता है पानी, उड़ जाता है रंग।

ये भी फिजूल की बात है
कि हम वक़्त के पहिये की किसी तीली पर
बांध लें उम्मीद का झूला
और एक दिन मर जाएँ इन्हीं धागों में घुट कर
मगर जीना चाहिए ऐसे ही रेशों के पैरहन के साथ
जिनसे दिखती हों महबूब की सूरत।
तुम्हारी अनुपस्थिति में भी सांस लेती हैं मुहब्बत
वरना तुम्हारे होते हुये उसे कहाँ फुरसत है
वह उचक कर चूम लेना चाहती है तुम्हारी परछाई भी।

ये चाहे कितना भी बेढब लगे
मगर मान लेना चाहिए
कि उस लम्हे की उम्र हज़ार साल से बढ़ कर होनी चाहिए
जब उसकी आमद से ही आ जाती हों अनगिनत चीज़ें
कि जैसे प्रेम किसी तूफान की तरह उड़ा लता है अपने साथ जाने क्या क्या।

इस वक़्त चाँद गायब है, हवा भी कम कम है
किसी को नहीं मालूम कि क्या बजा है?
इस वक़्त तुम जाने कहाँ हो, किस जगह रखे हैं तुम्हारे पाँव...
* * *
[तस्वीर सौजन्य : पल्लवी त्रिवेदी]