नासमझी के टूटे धागों में


कुछ काम अरसे से बाकी पड़े रहते हैं. उनके होने की सूरत नहीं बनती. कई बार अनमने कदम रुकते हैं और फिर किसी दूजी राह मुड़ जाते हैं. फिर अचानक किसी दिन पल भर में सबकुछ इस तरह सध जाता है कि विश्वास नहीं होता. क्या ये कोई नियति है. घटित-अघटित, इच्छित-फलित भी किसी तरह कहीं बंधे है? क्या जीवन के अंत और उसके प्रवाह के बारे में कुछ तय है? मैं अक्सर पेश चीज़ों और हादसों और खुशियों के बारे में सोचने लगता हूँ. अब क्यों? अचानक किसलिए? और वह क्या था जो अब तक बीतता रहा. मुझे इन सवालों के जवाब नहीं सूझते. एक चींटी या मकड़ी की कहानी कई बार सुनी. बार-बार सुनी. निरंतर असफल होने के बाद नौवीं या कोई इसी तरह की गिनती के पायदान पर सफलता मिली. मैं यहाँ आकर फिर से उलझ जाता हूँ. कि पहले के जो प्रयास असफल रहे वे असफल क्यों थे और एक प्रयास क्यों सफल हुआ.

हम कब तक जी रहे हैं और हम कब न होंगे. आदेश श्रीवास्तव. अलविदा. गीता का संदेश इसी नासमझी का सन्देश है कि कर्म किये जा और फल की इच्छा मत कर. 
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हाथों में आ गया जो कल रुमाल आपका

मेरा पेशा ही इतना मीठा है कि कभी खुद पर रश्क़ होने लगता है. रेडियो स्टेशन के ठन्डे सीले स्टूडियोज में कहीं बैठे हुए फिल्म संगीत सुनते सुनाते जाना से बेहतर क्या हो सकता है. रात ग्यारह बजे के आस पास जब ट्रांसमिशन के पूरे होने में कुछ मिनट भर बचे हों, उस वक़्त पाकीज़ा फिल्म से गीत प्ले हो रहा हो चलते चलते यूँ ही कोई.. और फिर रेल इंजन की विशल से फिल्म संगीत सम्पन्न हो रहा हो. या लग जा गले के फिर ये हंसी रात हों न हो गीत पूरा होने से पहले उसके आखिरी में ऐ ऐ ऐ सुनते हुए समाचारों से पहले की बीप बजने लगे. ऐसे जादुई मौसमों में संगीत और संगीत की दुनिया के लोगों के नाम बोलते हुए, साजों पर उनकी कलाकारी सुनते हुए, गीतों के बोलों को गिरहों में पिरोते हुए सुनना. कितना बेशकीमती है, मैं कभी कह नहीं पाऊंगा.

ऐसे ही पहली बार जब आदेश श्रीवास्तव का नाम बोला था वह गीत था, हाथों में आ गया जो कल रुमाल आपका. आज सचमुच आदेश का ख़याल मुझे बेचैन कर गया है. परसों ही मैंने आदेश के स्वास्थ्य के बारे में समाचार सुना था. उसे सुनते हुए मुझे वह शानदार व्यक्तित्व का धनी याद आया जो एक ड्रमर था. कहीं किसी टीवी शो के बारे में मालूम हुआ कि आज आदेश उसके गेस्ट हैं. मैंने उसे देखने के लिए समय निकला. वे आये और आते ही उन्होंने ड्रम को चुना. शायद कुछ प्रेम कभी बिसराए नहीं जा सकते. संगीत रचनाकार के मन का प्यारा साज़ हमेशा उसे अपने पास खींच लेता है. मैं ड्रम बजने वालों को बड़े सम्मोहन से देखता आया हूँ. शायद इसलिए कि स्कूल कॉलेज के दिनों में ड्रम बजाने वाले लड़कों से सब लड़के लड़कियां खूब प्यार करते थे. लेकिन मैं संगीत का अ आ कभी न सीख पाया. स्वप्नजीवी होने का यही एक दुःख है.

मैंने शाम के ट्रांसमिशन ही किये हैं. मुझे सवेरे जागने और पांच बजे स्टूडियो पहुँचने में रूचि नहीं रही. दोपहर आलस भरी होती थी. इसलिए मैं हमेशा चाहता था कि शाम की ड्यूटी लग जाये. और फिर उदघोषणा करते जाना. फिल्म संगीत के ईपी और एलपी छांटना. शाम की सभा के फिल्म संगीत में चलत के गाने बजाने में बड़ा सुख होता है. मेरा रेडियों में आना उन्हीं दिनों हुआ था जब आदेश श्रीवास्तव संगीतकार बनकर आये थे. और मैंने लगभग तब तक लगातार उदघोषणाएं की जब उनके आखिरी दौर की फिल्म आई होगी. कुछ बरस पहले दीवार फिल्म का गीत चलिए वे चलिए.. मुझे इस तरह अपने सम्मोहन में बांध चुका था कि फिल्म संगीत चुनते हुए हर दूसरे तीसरे दिन में उसे प्ले कर देता था. आदेश की बीट्स के साथ मेरा चेहरा अक्सर ख़ुशी से भरा हुआ हिलता रहता था. स्टूडियो के उस तरफ बैठा कोई इंजिनियर साथी जब मुझे इस तरह मुस्कुराते हुए खुश देखता तो वह भी प्रसन्न हो जाता था. ये आदेश श्रीवास्तव का जादू है जो देश और देश के बाहर और जाने कहा-कहाँ कितने लोगों को स्पंदित करता है और करता रहेगा.

इस बीच राजनीति फिल्म में आदेश का संगीत आया,. कहाँ वे रुमाल और सोणा सोणा जैसे गीत और कहाँ मोरा पिया मोसे बोलत... ये ही जीवन सफ़र है और यही सीखना है. आदेश का संगीत भी एक गहराई में अपना घर कर चुका था. अनुभूतियों से जब थोथी चीज़ें उड़ने लगती हैं, उसी समय जीवन बीज अपने सबसे लघुतम और सर्वाधिक उपयोगी रूप में हमारे सामने आता है. एक ड्रमर संगीत के अपने सफ़र में कैसी अद्भुत मिठास तक पहुँचता है यही कहानी आदेश श्रीवास्तव की याद है.

आदेश श्रीवास्तव, आप मेरे लिए स्पन्दन हैं और हमेशा रहेंगे. यकीनन मोरा पिया मैं कभी प्ले न करना चाहूँगा... आखिर रोने का भीगा गीला सीला मौसम कौन जान बूझकर अपनी झोली में भरे. लव यू.