ठहरे उदास चितराम

आकाश में कुछ बादल आ गये थे। बरसात की आस न हुई। गर्म दिनों का लंबा सफ़र अभी और चलना था। बादलों के आने से उमस और बढ़ गई थी। अच्छा फिर भी लग रहा था। गर्मी में उमस के बढ़ जाने से तकलीफ़ बढ़ती ही है मगर जाने क्यों सब अच्छा लगने लगा।

कि बादल आ गए थे।

अचानक किसी ऐसे व्यक्ति की याद, जो आप तक कभी आएगा नहीं। जो आपके लिए कुछ न करेगा। लेकिन मन के ठहरे उदास चितराम में कोई हलचल होने लगती है। वह जो नहीं है, उसका न होना तय होने पर भी कुछ बदलने लगता है।

कुछ लोग जो जीवन से ही नहीं वरन दुनिया से भी जा चुके होते हैं, उनका अचानक ख़याल आता है। मन बदलने लगता। हमारी परिस्थिति में क्षणभर में कोई बदलाव नहीं आता लेकिन हम महसूस करते हैं कि अब कुछ अलग लग रहा है।

वे जिनके होते हुए कुछ होने की आस नहीं है, वे जो नहीं है या वे जो कभी न होंगे। वे कैसे हमारा मन बदल देते हैं। क्या ये बादल बरसेंगे? शायद नहीं, शायद कल या शायद अगले कुछ दिन बाद। फिर मन तो बदल गया। क्या हुआ?

हमारे भीतर कुछ ऐसा है। जिसके अनगिनत खिड़कियां हैं। वे खिड़कियां बन्द रहती हैं। लेकिन कभी खुल जाती है। उनके खुलते ही जीवन, शरीर में बहने लगता है। हम एक थकान में ऊर्जा का संचार पाते हैं।

हम खड़े हो जाते हैं। हम बाहर आते हैं। बालकनी में नहीं वरन उदासी और शिथिलता से बाहर आते हैं। तो वो जो हुआ नहीं, जिसके होने की आस कम है, वह भी हमको बदल देता है।

अपने काँधे पर हाथ रखे हुए एक भले आदमी की याद। एक प्रेमिल बिछोह की उदास स्मृति, एक टूटा हुआ सम्बन्ध, एक गुज़रा हुआ पल कितना बड़ा होता है।

जाने कितना।

ज़िन्दगी वही रहती है लेकिन कभी-कभी मैं महक उठता हूँ। मैं मुस्कुराने लगता हूँ। मुझे लगता है कि कहूँ शुक्रिया। मैं दीवार पर हाथ रखता हूँ। वह सुनती है मेरे हाथ मे बहती धड़कनों को। कभी-कभी दीवार कहती है- 'सुनो तुम धड़क रहे हो।" तब मुझे अपनी हथेली में धक धक सुनाई देने लगती है।

तुम मुझसे दूर कैसे जा पाओगे? सोचना।

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