एक लिफाफे में रेत



प्रेम की हड़बड़ी में वो स्नो शूज पहने हुये रेगिस्तान चली आई थी।

वापसी में रेत उसके पीछे झरती रही। कार के पायदान पर, हवाई अड्डे के प्रतीक्षालय में, हवाई जहाज और बर्फ के देश की सड़कों तक ज़रा-ज़रा सी बिखर गयी। थोड़ी सी रेत उसके मन में बची थी।

उसके मन में जो रेत बसी हुई थी वह बिखर न सकी। शिकवे बनकर बार बार उठती थी। उसके सामने अंधेरा छा जाता था। सांस लेने में तकलीफ होने लगती थी। बेचैनी में कहीं भाग जाना चाहती थी लेकिन रास्ता न सूझता था। बारीक रेत का स्याह पर्दा उसे डराता रहता था।


उस रेत को उसने एक लिफाफे में रखकर मुझे भेज दिया। मैंने उसे केवल एक ही बार पढ़ा था। उसे पढ़ा नहीं जा सकता था। उसमें मेरे लिए कोसने थे। बेचैनी थी। मैं लिफाफे को कहीं रखकर भूल जाना चाहता था। और मैंने बड़ी भूल की। उस लिफाफे को मन के अंदर रख लिया।

"तुमसे मिलते ही मैं बर्बाद हो गयी। मैं अपने बच्चों से, पति से, घरवालों से, पेंटिंग से, सोचने से, समझने से और हर उस बात से बेगानी हो गयी, जो मेरी दुनिया थी। जहां चाहे हरदम खुशियों के फूल न झरते थे मगर शांति थी। तुम्हारे पास से लौटकर छोटी बेटी को गोद में उठाया तो अचानक सिहर उठी। कि ये तुम्हारी बेटी नहीं है। इस ख़याल के बाद मैं नीम पागल अपना सर दीवार से फोड़ लेना चाहती थी। लेकिन मैं रेत की तरह सोफ़े पर बिखर गयी।"

कल सर्द मौसम की रात थी। लेकिन काली पीली आँधी से कमरा भर गया। सांस उखड़ने लगी। अंगुलियाँ अंधेरे में चमकीली पन्नियों में रखी दवा खोजने लगीं। दराज़ के कोने में बर्फ के फाहे रखे थे।

वे फाहे जो उसके स्नो शूज पर चिपके हुये रेगिस्तान चले आए थे।
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पेंटिंग थॉमस शोलर की है। आभार।