अतीत कोई मर चुकी शै नहीं है

बहुत नई एक पुरानी बात 

इतना सा लिखकर ड्राफ़्ट में छोड़ दिया था। तीन साल पहले का अक्टूबर महीना था। मैं सोचने लगता हूँ कि क्या बात थी?  मुस्कुराता हूँ। बीत चुकी बात केवल दो काम की ही होती है। एक मुस्कुराने की दूजी सीख लेने की। 

सीखने की बात आते ही मैं मुस्कुराने लगता हूँ कि जीवन में जो काम दिल की खुशी के लिए किया हो, उनसे क्या सीखना। वे तो खुशी के लिए किए काम थे। जैसे जुआ करना, सट्टा लगाना, दोपहरें तम्बाकू के धुएं की छांव में बिता देना, शामें शराब से भर लेना और प्रेम कर बैठना। 

सब ग़लत काम बहुत सही होते हैं।

लू चल रही है। हर दो दिन बाद हीट स्ट्रोक गले लग जाता है। बदन हरारत से भर जाता है। तपिश मुसलसल बनी रहती है। नींद किसी अधबुझी लकड़ी सी लगी रहती है। रह रहकर नींद का झकोरा आता है। ऐसी नीम बेहोश नींद में बेवक़्त के सपने ऐसे आते हैं, जैसे तमाशा दिखाने वाला आधे तमाशे के बाद बात बदल देता है।

जागना नींद से अधिक भारी होता है। ऐसे बैठा रहता हूँ जैसे कुछ सोच रहा हूँ मगर असल में केवल चुप बैठा होता हूँ। एक अधपके पेड़ से अधिक चुप या उदासीन। क़स्बे की सड़कें, चाय की थड़ी, बालकनी से दिखती गली, छत से दिखता आसमान वहीं होंगे। वहीं रहें। 

मैं डायरी पढ़ने लगता हूँ तभी ये एक पंक्ति दिखती है। डायरी में और भी बहुत कुछ लिखा है। एक नया ड्राफ्ट है। इसमें शैतान की प्रेमिका की कविताएं हैं। शायद मैं इन कविताओं को एक फोल्डर में रखने के लिए यहां वहां से खोज रहा हूँ।

उलझे ख़यालों के बीच एक चिड़िया अपनी लंबी तान में किसी से कुछ कहती है। शायद मेरी तरह कोई बेवजह की बात। 
* * *

अतीत कोई ज़िंदा शै नहीं है 
न ही वह मरकर विदा हो चुका है।

वह पास खड़ा है, साथ चलता है
और खुद को बुनता जाता है।
* * *

ये डायरी का पन्ना भी इस क्षण अतीत बनता है। कि जितनी पुरानी वह एक पंक्ति मिली उतनी पुरानी तस्वीर भी। अतीत पक्का है। भविष्य केवल अनुमान भर है।

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