एक अजनबी जगह रात

स्टेशन पर कुछ अजनबी खड़े थे। उनके बारे में मुझे ये मालूम था कि वे किसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। उनकी बेसब्री भी उतनी ही जाहिर थी, जितनी कि उनकी प्रतीक्षा। 

रात हो चुकी थी। दिल्ली शहर के हादसों से डराई गई एक लड़की की याद आई। मैंने दूर खड़े लोगों के पास तक का फेरा दिया। मुझे उनमें कोई ऐसा नहीं दिखा, जिससे अनुमान लग सके कि ये वही है।

उनको देखने और भला समझने के क्षण भर बाद याद आया कि वे भी तो ऐसे नहीं दिखते थे। उनकी मुस्कान भी भली थी। वे कैब की पिछली सीट पर साथ बैठे हुए औचक चूम लेते थे। उनकी सवाली नज़र चूम लेने के संतोष से भरी होती। 

कभी बहुत दूर मेट्रो में सटकर खड़े हुए उमस भरे माहौल में सांसों की गर्मी और कॉलर के पास से आती खुशबू आसपास बसी रहती। जब कभी धकियाते हुए भीड़ चढ़ती और करीब हो जाने के सुख का धक्का लगता। अचानक सब के रास्ते जुदा हो गए। 

मैंने देखा कि घड़ी में क्या बजा है? 

फिर सोचा कि मैं इस अजनबी शहर से बरसों मिला मगर अजनबी ही रहा। फिर यहाँ क्या कर रहा हूँ। क्या मैं किसी को विदा करके आया हूँ या मैं किसी से मिलने जा रहा हूँ। 

दो मिनट में मेट्रो आएगी। मैं खाली गाड़ी में बैठ जाऊंगा। मैं अपने बैग में रखी किताब नहीं देखूंगा। मैं केवल केवल स्टेशन की सूची देखूंगा। अब और कितने स्टेशन दूर जाना है। फिर... पता नहीं क्या। 

लेकिन जब मैं बाहर आया अजब शांति पसरी थी। पार्किंग खाली पड़ी थी। ऑटो वाले नहीं थे। निजी सुरक्षा कंपनी का एक वर्दी वाला आदमी खड़ा था। मैंने पूछा "यहाँ इस समय सिगरेट फूंकना गलत तो न होगा।" उसने इशारा किया कि पार्किंग प्रवेश के कियोस्क के पीछे हो लूं। 

मैंने सोचा क्या यही वो दिल्ली वाला आदमी है? 

कुछ देर और बैठना था मगर मुझे काफी दूर जाना था। मैं कैब का शीशा निचे किए हुए बाहर देख रहा था। जैसा कि अक्सर फ़िल्म वाले शूट करते हैं। जिज्ञासा, उदासी या बिछोह से भरे किरदार का कार से जाते हुए का दृश्य। 

हालांकि न मैं उदास था, न मुझे इस शहर के लिए कोई जिज्ञासा थी और न ही बिछोह था। मैं शहर में एक ऊदबिलाव की तरह था। चुपचाप उसे देखता हुआ। कैब बढ़ी जा रही थी। 

एक आदमी ने सेल्यूट किया। जाने क्यों। मैंने झुककर उनको दोनों हाथ जोड़े। कंधे पर लटका बैग संभालते हुए आगे बढ़ा। कोई पेड़ था। जिस से एक भरे पूरे जंगल की गंध आ रही थी। 

मैंने नाक उठाकर उस गंध को नथुनों में भरा। इसके बाद अपनी कमीज़ की बांह को सूंघा। उसमें से रेगिस्तान की गंध गायब थी। मैं रेगिस्तान को धोखा देकर अजनबी जगह रात बिता रहा था। 

पता नहीं क्या? मगर सब ठीक था हालांकि रात का एक बजा था।

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