सुलगते जाने को

हम अतीत में क्या खोज सकते हैं। भविष्य को कितना जान सकते हैं। वर्तमान को कितना देख सकते हैं। ये सोचते हुए एक पुरानी तस्वीर देखता हूं।  

क्या मैंने इस तस्वीर को खोजा है या ये तस्वीर कुछ याद दिलाने को सामने चली आई है। कि इस लम्हे तुम कितना इस लम्हे को देख रहे थे। इस लम्हे से पीछे कितनी दूर तक सोचा था। आगे कभी इस लम्हे को कैसे याद करोगे। 

शायद कुछ भी नहीं। 

यादें एब्सट्रैक्ट हैं। नंगी हैं। हंसी और नमी से भरी हैं। उनमें तम्बाकू की गंध है। ऊंट की पीठ से उतारी काठी जैसी महक से भरी है। बहुत तेज़ भाग रही हड़बड़ी वाली किसी मशीन के अचानक रुक जाने से हुए घर्षण की जलती हुई खुशबू है। 

रेड कार्पेट, टीवी शो, भव्य सम्मेलनों, प्रतिष्ठित करने को चमकते मोमेंटो, भीड़ में अंगुलियों के छू लेने भर की कामना से उपजा सुख, कहीं अपने नाम का शोर सुनने को चाह में हांफते हुए कुछ न कुछ करते जाने से बहुत परे की बात है। 

मन किसी के साथ सुलगते जाने और फिर हवा में चुपचाप गुम हो जाने का मन है। उसे अतीत और भविष्य से क्या वास्ता होगा। वह बस वर्तमान के बारे में क्षणिक सोचता है कि काश तुम होते। जानता है कि नहीं हो। 

जब जो नहीं है तो ठीक है। ओके। ऑल राइट।

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