सुबह के साढ़े आठ बजे के आस पास का समय था। हाइवे पर यातायात रोक दिया गया था। हमने अपनी कार को थोड़ा सा पीछे लिया और रोड साइड ढाबा के आगे लगा दिया। मैं वाशरूम होकर आया तब तक आभा ने पोहा और चाय का कह दिया था।
सुबह सात बजे जयपुर से चले थे और डेढ़ घंटे बाद अजमेर की ओर मोखमपुरा से एक किलोमीटर पहले पहुंचे थे। वहाँ मिथेन गैस का टैंकर पलट गया था। ये चिंता की बात थी कि कुछ समय पूर्व इसी हाइवे पर गैस टैंकर रिसाव और आग से बीस लोगों की असामयिक मृत्यु हो गई थी। भयावह हादसे में जली गाड़ियों के कंकाल हाईवे के आस-पास पड़े, दुर्घटना की भयवाहता का एक खाका खींचते रहते थे।
पोहा खाते हुए मैंने व्हाट्स एप पर फैमिली ग्रुप में संदेश किया। बगरू से आगे नासनोदा के पास जाम लगा है। लौटने वाले कह रहे हैं कि गैस टैंकर पलट गया है। गूगल कोलाइजन बता रहा है। हम एक रेस्तराँ के आगे रुक गए हैं।
हमारे पास की टेबल पर तीन लोग बैठे थे। भले थे, सभ्य थे। वे पास के गाँव में ज़मीन ख़रीदने जा रहे थे। उनकी प्लेट्स में पराँठे थे। अचार था। साथ में दही भी था। अपने खाने में मगन थे। उनमें से एक आदमी अभी दस मिनट पहले की घटना के बारे में ऑनलाइन सूचनाएँ खोज रहा था।
मुझे उम्र ने सिखाया कि हड़बड़ी से मत सोचो। कुछ व्यावहारिक सोचना सीखो। जो परिस्थिति है, उसके बारे में विचार करो। इसलिए मैं चुप चाय पीता रहा।
इसी बीच पास की टेबल पर बैठे एक व्यक्ति ने दुर्घटना के बारे में सूचना दी। ये पुरानी सूचना का मामूली अपडेट था कि टैंकर ही पलटा है। लेकिन इसमें एक वीडियो भी था। जिसमें टैंकर से आग की लपटें उठ रही थी।
भाई ने किसी पुलिसवाले से सूचना प्राप्त की होगी। उन्होंने व्हाट्स एप किया। मिथेन से भरा टैंकर दुर्घटना ग्रस्त हुआ है। ड्राइवर की जलने से मौत हो गई है। पुलिस थानों से अधिकारी और प्रशासनिक अधिकारी घटनास्थल पर हैं।
दमकलें तेज़ी से जा रही थी। ज्वलनशील पदार्थ होने से अतिरिक्त सावधानी बरती जा रही थी। जाम में फंसे लोग उखड़े हुए थे। उनमें अचानक बदलाव इसलिए आया कि यात्रा के बीच ये स्टॉप तो सोचा ही नहीं था। हम ऐसा सोचते ही नहीं है। ये न सोचना ही सुख है। अन्यथा हम जीवन के प्रति आश्वस्ति के भाव से दूर हो जाएँ।
ज्वलनशील पदार्थ से उपजी आग में जीवित जल जाना त्रासद है। इस त्रासदी से कुछ दूर खड़े वाहन, उनमें सवार लोग और कुछ आस-पास के रहवासी, सब रास्ता कैसे और कब खुलेगा के तार पर झूल रहे हैं। एक नौजवान मृत्यु पर कोई बात नहीं करता। उसके परिवार के बारे में शायद ही कोई सोचता।
अवश्य कुछ ऐसे मन होंगे जो इस दुर्घटना से ख़ुद को जोड़कर चिंतित हुए होंगे। किंतु अधिकतर लोग अपनी यात्रा के बारे में ही सोच रहे थे। ये उनकी बातों से समझा जा सकता था या फिर चेहरों पर पढ़ा जा सकता था।
जैसा प्रायः होता है, डेढ़ घंटे बाद रास्ता खुला। वाहन सरकने आरम्भ हुए। लोग दौड़कर गाड़ियों की ओर भागे। कुछ ने कहा जल्दी करो जाम फिर लग जाएगा। ये दृश्य कुछ ऐसा था जैसे नरक की दीवार में कोई छेद हुआ है। जो जितनी तेज़ी करेगा। उतनी ही तेज़ी से नरक मुक्ति का स्वप्न सच हो जाएगा।
पास की टेबल वाले एक सज्जन ने कुछ देर बातें की थी। उन्होंने मुझसे पूछा- “आप कहाँ के हैं?” मैंने कहा “बाड़मेर” दो और सवालों के बाद उन्होंने पूछा- “कौन हैं?” मैं समझ गया था कि वे जाति के बारे में पूछ रहे हैं। मैंने कहा- “जाट” जयपुर रहते हैं? मैंने कहा- “नहीं। हम मिलने आए थे। लौट रहे।”
हमारी बातचीत बाड़मेर के कला उत्पादों, उनके निर्माण, क्रय विक्रय से होती हुई सूई धागों तक आई। उन बच्चियों और महिलाओं तक भी जो घर परिवार के पूरे काम करने के बाद भी तीन चार पाँच घंटे पैचवर्क का काम करती हैं। कपड़े के आकार के अनुसार उनकी मजदूरी तय है। जो कि दैनिक औसत सौ रुपये से कम ही रह जाती है।
हम थोड़ी देर और ढाबे पर बैठे रहे। सब गाड़ियाँ रुक गई। जाम सचमुच फिर लग गया था। ये भी कोई नई बात नहीं है। दो ड्राइविंग लेन और एक ओवर टेक लेन पर चार लेन में गाड़ियाँ चलती हुई फँस गई थी।
इसी बीच जिस किसी ने ग़लत और ख़तरनाक ढंग से गाड़ी चलाकर जाम को पीछे छोड़ दिया था। उनकी गाड़ियों में वाह पापा आपने कमाल कर दिया, वाह भैया आप कहाँ से निकाल लाए। वरना अब तक हम नरक में ही फँसे होते। ऐसे वाक्य तमगे बरस रहे होते हैं।
असल में ये लोग ठीक भी हैं कि क़ानून को मानने वाला देर से पहुँचे तो उसका क़ानून के प्रति कोई प्रेम नहीं बचता। कोई भी व्यक्ति अच्छा नागरिक बनकर समय, धन और श्रम से ठगना क्यों पसंद करेगा।
हम पंद्रह बीस मिनट ऐसे ही बैठे रहे। इसके बाद अपनी छोटी सी हैचबैक से हाइवे पर आ गए। कोई तीन घंटे की देरी से घर पहुँचे। मगर आराम से पहुँचे।