खुशबू उसका पता है...

यात्रा वृतांत : तीसरा भाग

नागौर मेरे ज़हन फ़िर लौट आया. बैलों वाला नागौर नहीं वरन अकबर के नौ रत्नों में से दो रत्न अबुल फज़ल और फैज़ी का जन्मस्थान नागौर. वह नागौर जिसके निवासी शेख़ मुबारक ने उलेमाओं के बीच गज़ब का कायदा स्थापित करवाने के लिए बादशाह अकबर के लिए अचूक आज्ञापत्र तैयार किया था. वह एक संविधान बनाने जैसा काम था. ये दो रत्न उसी शेख़ मुबारक के ही बेटे थे. मुझे एक और बड़ा नायाब आदमी याद आया. उसका नाम था अब्दुल क़ादिर बदायूँनी. जिसने बादशाह अकबर के यहाँ नौकरी पर रहते हुए भी चोरी छिपे उस वक़्त का सच्चा इतिहास लिखा और उस दौर में दिल्ली में वही सबसे अधिक बिकने वाली किताब थी. मुझे ये मुल्ला बदायूँनी जन्मजात नाख़ुश और नालायक पात्र लगता है. उसकी मृत्यु के बाद में जहाँगीर ने उसके खानदान को यह कहते हुए लूट कर जेल में डाल दिया था कि उस पुस्तक ने अब्बाजान की बेइज्जती की थी.

इन यादों का कारण है कि मेरे पिता इतिहास पढ़ाते थे और छोटा भाई भी इतिहास का एसोसियेट प्रोफ़ेसर है. उनके द्वारा सुनाये गए रोचक किस्से हँसते हँसते मेरे मन पर अपनी छाप छोड़ते गए हैं. लेकिन मैंने कभी इतिहास नहीं पढ़ा. संभव है कि प्रेमचंद की कथा बड़े भाई साहब में दिए गए उद्धरण कि "आठ-आठ हेनरी गुज़रे हैं, कौनसा कांड किस हेनरी के समय में हुआ, क्या यह याद कर लेना आसान समझते हो ?..." यही डर मुझे इतिहास से दूर ले गया होगा. फ़िर थोड़ा बड़ा हुआ तो सोचता रहा कि पदेलों (पाद मारने वाले) और कमसिन लड़कियों को फंसाने के अनुभवों के किस्से लिख कर, लिखा गया ऐतिहासिक उपन्यास 'दिल्ली', लेखक खुशवंत सिंह की नज़र में इतिहासनामा है तो खैर हुई कि इतिहास न पढ़ा.

जून का महीना और बेतरहा गरमी. अनुनय विनय कर डिब्बे में भरे हुए हरिद्वार जाने वाले वेटिंग लिस्ट के तीर्थयात्री. वातानुकूलन यन्त्र से आती हुई नाकाफ़ी हवा के बीच अजनबियों के चेहरे देख कर उकताए हुए बच्चे अपने किसी खेल में रम गए थे. मैंने बहुत से स्टेशन देखे हैं जहाँ चाय, कॉफ़ी, बिस्किट, स्नेक्स, पूरी, सब्जी और पानी के अलावा कोई खास चीज़ भी बिकती हो. जोधपुर के पास लूणी जंक्शन रसगुल्ले के लिए प्रसिद्द रहा है. मैं पर्यटक के तौर पर कभी इस स्टेशन से गुजरा होता तो भी उन रसगुल्लों को कभी नहीं खरीदता. वे देसी डिब्बाबंद तकनीक में या फ़िर हाथ ठेले पर कांच के पीछे रखे होते. कुछ आम किस्म की डिश स्थान विशेष पर ख़ास हो जाया करती है. जैसे बस के सफ़र में बाड़मेर और जोधपुर के बीच धवा गाँव में दाल के पकोड़े खाने के लिए रुकना यात्री बहुत पसंद करते हैं.

ऐसी एक खूबी नागौर पर भी दिखाई दे जाती है कि वहां मेथी (Fenugreek) की सूखी हुई हरी पत्तियां बेची जाती है. यह एक लाजवाब मसाला है. मेथी के स्वाद और खुशबू की दीवानगी सर चढ़ कर बोलती है. अगर आप सामान्य कोच में यात्रा कर रहे हों तो खिड़की के रास्ते मेथी की सुगंध आप तक पहुँच ही जाएगी. पाकिस्तान के सियालकोट में महाशय चुन्नी लाल की मसालों की एक छोटी सी दुकान थी. बंटवारे के बाद उन्होंने दिल्ली के करोल बाग़ इलाके में महाशिया दी हट्टी ऑफ़ सियालकोट के नाम से खोली. वह अब वैश्विक ब्रांड एम डी एच हो गयी है. महाशिया वाले पहले पाकिस्तान के कसूर इलाके की मेथी को बेचा करते थे, भारत आने के बाद इन्होने कसूर इलाके की मेथी से भी बेहतर खुशबू वाली नागौर की मेथी बेचनी शुरू की. एम डी एच ने अपना समूचा कारोबार लाल देगी मिर्च और नागौर की मशहूर मेथी को बेच कर खड़ा किया है.

हम सुबह छः बजे इस रेल में सवार हुए थे और अब तक दिन के डेढ़ बज चुके थे. हमें भी भूख लग आई थी. बच्चों की चाची ने इडली और साम्भर बना कर भेजी थी. नानी के घर से आलू और परांठे बन कर आये थे. जया सांगरी की लीडरशिप में पंचकूटा की सब्जी देसी घी में बना कर साथ लाई थी. जोधपुर से बैठे यात्रियों ने भी अपने स्टील के कटोरदान खोलने शुरू किये. पूरा डिब्बा बीकानेरी भुजिया, जोधपुरी शाही समौसों, लहसुन की चटनी और भांत भांत के पकवानों से आती मसालों की गंध से भर गया। जैसे हमारा डिब्बा पटरी से उतर कर किसी पाकशाला में घुस आया है.

जारी...

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