इस शहर का नाम क्या है ?

एक बेकार सी दोपहर के वक़्त पलंग के आखिरी छोर पर बैठे हुए लड़की ने कहा. वह मुझे पसंद है. ही इज़ सो केयरिंग ऐंड वैरी हम्बल. मालूम है, मेरी पहली रिंग पर वह फोन पिक करता है, जब मैं कहती हूँ अभी आओ तो वह उसी समय आता है. मेरे लिए रात भर जाग सकता है. उसने कई दिनों से अपनी जींस नहीं बदली क्योंकि वो मैंने उसे दिलवाई है. अभी वह क्रिकेट खेल रहा है मगर खेलते हुए भी मुझसे बात करता है. वो मेरे साथ रहना चाहता है.

इसके बाद एक लम्बी चुप्पी दोनों के बीच आकर बैठ गयी. उनके बीच कुछ खास बचा नहीं था. जिसे वे प्रेम समझते थे वह वास्तव में एक दूसरे के होने से एकांत को हरा देने का प्रयोजन मात्र था. एक तरल अजनबीपन बढ़ने लगा तो उसके पहलू से उठते हुए लड़की ने आखिरी बात कही. तुम्हारे साथ सिर्फ़ रो सकती हूँ और उसके साथ जी सकती हूँ.

उसके चले जाने के बाद कई सालों तक उस लड़के को कुछ खास इल्म न था कि किधर खड़ा है और किस झोंके के इंतज़ार में है. धुंधली तस्वीरों में उस शहर की सड़कें वीरान हो गई थी. घंटाघर के पास वाली चाय की थड़ी पर वह चुप सोचता रहता था. इस शहर का नाम क्या है ?

नदी के किनारे बैठे हुए
या वादियों को सूंघते, तनहा रास्तों के मोड़ पर
या कभी किसी सूनी सी बेंच पर
या शायद किसी पुराने पेड़ की छाँव में
एक तिकना था उसके हाथ में और अचानक छूट गया.

जैसे किसी ने पढ़ लिया हो स्मृतियों में बचा प्रेम...

ऐसा सोचते हुए मुझे ज़िन्दगी कुछ आसान लगती है
कुछ रूह को दीवानेपन की कैद में सुकून आता है.

जब अचानक बच्चे दौड़ते हुए आते हैं, कमरे में
मेरे हाथ से भी कोई पन्ना अक्सर छूट जाता है
जैसे पकड़ी गयी हो दोशीज़ा, चिट्ठी लिखते हुए महबूब को
कि बातें बेवजह हैं और बहुत सी हैं...

* * *

इधर कई दिनों से बादलों का फेरा है. हवा अचानक रुक जाती है. शहर की सड़कें और घर अजनबी लोगों से भर गए हैं. डॉलर की पदचाप से उडती हुई धूल पेशानी की मुबारक लकीरों को और गहरा कर रही है. अब ये रेगिस्तान मुझे रास नहीं आ रहा. बैडरूम में एक हाथ की दूरी पर प्रीमियम स्कॉच विस्की की तीन बोतलें रखी है मगर रूस की घटिया देसी शराब वोदका पीता हुआ शाम बुझा देता हूँ. तुम होती तो इसे भी डेस्टिनी कहते हुए मुंह फेर कर सो जाती...