मर जाने से बहुत दूर


तुम कहां होते हो. जब किसी बहुत पुरानी धूसर स्मृति से जागा कोई अहसास मेरे पास होता है. काश मैं बता सकूँ कि किस स्पर्श की नीवं पर बैठी है उदास चुप्पी. काश तुम देख सको कि किसी के जाने से बदल जाता है, क्या कुछ... कि और एक बेवजह की बात.

मर जाने से बहुत दूर

जनवरी के इन दिनों में सोचूँ क्या कुछ
कि नौजवान डाक्टरनी की खिड़की पर उतरती है धूप
अक्सर साँझ के घिरने से कुछ पहले.

लुहारों के बच्चे होटलों पर मांजने लगे हैं बरतन
आग के बोसे देने वाली भट्टियाँ उदास है
कि अब उस जानिब नहीं उठती है कोई आह
जिस जानिब था मर जाने का खौफ, हमसे बिछड़ कर.

अचानक
ख़यालों के ओपरा में हींग की खुशबू घोल गया है
अभी उड़ा एक मटमैला कबूतर.
और दीवार पर उल्टी लटकी गिलहरियाँ
अब भी कुतर रही है, दाने समय के, जनवरी के इन दिनों में...