घास की बीन


बया ने रात भर पत्तों के बीच देखा आकाश
दोपहर में किया याद, रेगिस्तान के ख़ानाबदोश सपेरों को
और फिर घने बबूल पर टांग दी, घास की बीन.

आंसुओं की बारिशों से भीगी रातों में,
ठुकराए हुए घोंसलों से उठती रही एक मादक वनैली गंध.

आदम मगर बुनता रहा, दिल के रेशों से घर, हर बार
बिखरता रहा उजड़े ख़्वाबों का चूरा
मन के गोशों से उठती रही हर बार एक उदास कसैली गंध.

क्यों एक दिन हो जाता है इश्क़ मुल्तवी, सौदा ख़ारिज,
क्यों ताजा खूं की बू आती है, क्यों परीशां परीशां हम हैं?