कुदरत ने बख़्शी है मुझे खुशियाँ

मैंने घर बनाने के लिए चीन्ही हुई ज़मीन पर बची हुई पगडंडी से गुज़रने की गलती की थी। बालकनी में खड़े हुये देखा कि कोई उठा रहा था दीवार और दो टुकड़ों में बंट रही थी पगडंडी। जिस रास्ते से हम गुज़रे थे उसे मिटते हुये देख कर आई उदासी से बाहर आने के लिए उस कच्चे रास्ते को भूल कर पक्के डिवाइडर तक गया। जहां कभी हम दोनों बैठे थे। मैं लिखना चाहता था कि चाहे किसी भी धुंध से गुज़रना हो, मैं गुज़रूँगा तुम्हारे प्यार से भरा हुआ दिल लेकर। ज़िंदगी के निशान न दिखेंगे, वक़्त की आहट न सुनाई देगी, मौसम बेनूर हो जाएगा मगर मुझे कोई न कर सकेगा तन्हा कि साथ चलता रहेगा, तेरा नाम...

खुशी अल्हड़ दिनों की याद का नाम है और उदासी ज़िंदगी की जेब से गिरा हुआ मुहब्बत भरा लम्हा।
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हैरत के पिंजरे में खामोश एक चिड़िया, मौसम से बेखयाल हवा का चुप्पी का राग। ये दोनों बातें हैं हमारे ही बारे में।
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मैं रात की नमी सा किसी पलक पर बसा हूँ, तुम हो मन में खिल रहे, उजाले की मानिंद। कुदरत ने हमारे बीच ये कैसा फासला रखा है।
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किनारे से फटा हुआ ज़िंदगी का नोट लिए सीढ़ियों पर उदास बैठा रहता हूँ। कई बार मन के खोटे सिक्के को टटोलता हूँ। कई बार जब तुम होते नहीं हो।
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तुम एक गहरे सागर हो, मैं हूँ एक उथला दरिया। मेरी मिट्टी को छान कर तुम, मुझे अपने दिल में रख लो।
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हवा की गिरहों में देखा है तुमको, कभी पाया है चिड़ियों के गीत में। कुदरत ने बख़्शी है मुझे खुशियाँ ये कैसी कैसी।
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पहाड़ पर सुबह की रोशनी उतरने को है, दुनिया के किसी कोने में कहीं कोई शाम उतरती होगी। ज़िंदगी हवा में उछाला हुआ एक सिक्का भर है।
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वक़्त ने बुहार दी है हर शे, झड़ कर बुझ चुके, फूल सारे दिन और रात के। मगर याद के बूटे पर, तेरी आधी खिली मुस्कुराहट जगमगाती है।
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मैंने पी ली है इतनी कि भूल जाऊँ दुनिया को, इतनी भी नहीं कि महबूब न रहे मुझको याद।
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तुम यहाँ होते तो देख सकते थे, अपने महबूब के मुक़ाबिल एक सूरज। लेकिन पहाड़ की ओट में डूबता हुआ। 
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[Painting Image Courtesy : Daniel Chiriac]

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