ख़ुद को क्या कहूँ



कभी-कभी आप ऐसी तन्हाई में जीते हैं, जो बेहद तकलीफदेह होती है.

इसलिए कि जिस पर भरोसा करना चाहते है. जिसकी बात का एतबार करना सीखते हैं. उसी की आत्मा में वे लोग बसे होते हैं, जिनसे आपको बेदिली है. आप उसे देखते हैं लगातार उन्हीं का फेरा देते हुए.

आप बार-बार उदास हो सकते हैं. रो सकते हैं, खुद को कोस सकते हैं, चुप हो सकते हैं. आप कुछ भी कर सकते हैं. मगर आखिर में आप वही करते हैं, जो अब तक करते आये हैं. आप सर झुकाए बैठे, उसकी बातों में हामी भर रहे होते हैं.


मैं कई बार सोचता हूँ कि ऐसे लोगों को क्या कहूँ, फिर सोचता हूँ ख़ुद को क्या कहूँ.

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