कब तक बचोगे?

बौद्ध मठों की घंटी
मोर का एक पंख
बुद्ध की स्फिटिक मूरत.

कितना कुछ तो है, ज़िन्दगी में.

बस वे जो तीन तिल हैं न तुम्हारी गर्दन के नीचे
उनमें से दो गायब हैं.
* * *

प्रेतबाधा के बारे में ये भी कहा जाता है कि वह दिवस अथवा रात्रि के एक निश्चित समय पर उपस्थित होती है. मेरे साथ भी कुछ रोज़ से ऐसा होने लगा है कि बारह बजते ही दफ्तर में बेचैन होने लगता हूँ. मेरे पांवों से पहले मन घर की ओर भागने लगता है. फिर मैं भी खिंचा हुआ चला आता हूँ. एक बजते ही बैडरूम में चला आता हूँ. मैं तेज़ी से कपड़े बदलता हूँ. अलमारी के हेंगर में टांगने की जगह दरवाज़ा टेबल जो भी दिखा वहीँ कपडे जमा. फिर अगले दस पंद्रह मिनट में नींद. चार पांच या छ बजे तक उठता हूँ. तब तक प्रेत बाधा जा चुकी होती है. 

आज मैंने खींच तान कर इस समय को आगे सरकाया है. अभी तक जाग रहा हूँ. वैसे दिल कहता है सो जाओ, आखिर बुढापे से कब तक बचोगे?
* * *

Popular Posts