जयपुरी पगड़ी वाले गांधी जी



हेनरी डेविड थोरो एक विचारक थे। उनका मूल विचार था कि संसार में स्वविवेक से बड़ा कोई कानून नहीं है। गांधी जी को थोरो का ये चिंतन प्रिय था। गांधी जी ने भी आत्मपरीक्षण सम्बन्धी काफी प्रयोग किये। अपने अनुशासन पर काम किया।

रेगिस्तान का प्रिय विचार है कि "माथो तावड़े में नी तपणो चाइजै" इसलिए गांधी जी को किसी जयपुर वासी ने पगड़ी पहना दी है। 
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तस्वीर आज सुबह ली थी। अभी तो दिल्ली जा रहा हूँ। शताब्दी वालों ने फटाफट सेन्डविच नमकीन पॉपकॉर्न और पानी पुरस दिया। सारे यात्री जैसे इसी इंतज़ार में थे। भूखी अवाम की तरह टूट पड़े। मैंने आभा से कहा- "इतनी हड़बड़ी में सबको एक साथ खाना शुरू नहीं करना चाहिए।"

आभा ने कहा- "क्या दिक्कत है?"

मैंने कहा- "ये सब चीजें यहां तक कि सेन्डविच ठंडे ही हैं।"

"तो ?"

"बाड़े जैसी फील आ रही है"

मैंने ध्यान दिया कि नमकीन आ गई लेकिन ग्लास नहीं आया। मुझे इस चिंतन में देखकर आभा ने पूछा- "क्या सोच रहे हो?"

"नमकीन आ गई लेकिन ग्लास और बोतल अभी नहीं आये।"

आभा ने इशारा किया देखिए। मैंने देखा कि लाल ट्रे में छोटे फ्लास्क चले आ रहे थे। कागज़ का कप भी आया। आभा ने कहा- "और कुछ चाहिए?" 
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अब तक तो अलवर जा चुका है। कूपा मांसाहारी मसालों की गंध से भर गया है। मैंने ऐसी लम्बी सांस ली है जैसे...

जाने दें।
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