मेरी धंधे पर नज़र है

एक करोड़ नौ लाख पाठक क्या पढ़ते होंगे सोचिये। व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी को कोसते न रह जाना। महान होने को दिखावा करने वाले इन दम्भी व खोखले समाचार पत्रों का हाल भी लेते रहना। शेर ठीक याद नहीं और शायर का नाम भूल गए। वैसे भी कलियुग के बाद चौर्ययुग चल रहा है। झूठ भाषण इस युग की आत्मा है। और फिर बशीर बद्र साब अपनी याददाश्त खो ही चुके हैं।

जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा। 
~ डॉ बशीर बद्र