कभी लगता है



सोचता हूँ कि इस समय गहरी नदी के बीच हिचकोले खाती नाव होता। डूबने और पार उतरने की आशंका और आशा में खोया रहता। जीने की इच्छा के सिवा बाकी यादें कहीं पीछे छूट जाती। मैं मगर सूखी नदी के तट पर पड़ी एक जर्जर नाव हूँ।

कभी लगता है बड़ी उदास बात है और कभी-कभी लगता है इससे अधिक सुंदर बात क्या हो सकती है?