हालांकि हम क्या बात करते

संदेशे छूटते जाते हैं। बात करना कल तक के लिए टल जाता है। जाने कौनसा कल। बस एक ख़याल दस्तक देता रहता है कि आवाज़ अभी तक न सुनी जा सकी।

हालांकि हम क्या बात करते?

इस तस्वीर को अगर तुम पढ़ सको तो यही लिखा है कि कलाकार स्टूडियो से बाहर हैं। साज़ बेतरतीब रखे हैं। साज़ के कवर घिस चुके हैं। स्टूडियो की दीवारों पर अनगिनत स्याह तारे टिमटिमाते हैं। और मैं सोच रहा हूँ कि तुमको पहली बार देखा था तो मैंने क्या किया।

पखावज से निकले दीर्घ स्वर की लोप होती हुई स्मृति की तरह मैं ओझल हो रहा था। धीरे धीरे डूब रहा था।

इसके बाद मुझे लगा कि तुम तक जाना चाहिए लेकिन ये न लगा कि तुमको बताना चाहिए कि मैं यहां क्यों आया हूँ। इसलिए केवल कहानियों की बातें ही ठीक थी। लेकिन क्या मैं तुम तक आया था?

एक उजली लौ असंगत नाचती है। मैं चुपचाप देखता हूँ। जैसे तुमको देखा था।

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