औंधे पड़े ताश के पत्ते

जूतों पर पान के पीक के दाग़, अंगुलियों में जले तम्बाकू की बासी गंध, सलवटों से भरी पेशानी पर उलझे बिखरे बाल, कमीज़ के कॉलर पर सियाह गिरहें, आस्तीनों में पड़ी अनगिनत सलवटों के साथ जुआरी ताश के औंधे पड़े पत्तों को टुक देखता था। 

जैसे प्रेमी बैठा हो असमाप्य प्रतीक्षा में। 

जीत कर जुआरी जूते बदलेगा, नहाएगा बहुत देर तक, चेहरे पर समंदर पार से आई खुशबू लगाएगा, सफेद कमीज पहन लेगा, ताश के पत्तों से दूर किसी शराबखाने में व्हिस्की के पास बैठा होगा। 

जब तुम आ जाओगे और प्रेमी की प्रतीक्षा समाप्त हो जाएगी तब प्रेमी कहीं नहीं जाएगा। वह कहेगा थक गए हैं। आओ धरती पर लेट जाएं कि इंतज़ार बहुत कड़ा होता है। अब हम मिलकर आकाश देखते हैं कि इसे सदियों देखा जा सकता है। 

लेकिन अकसर जुआ और प्रतीक्षा खत्म नहीं होती।

Comments