दही बड़े

साढ़े पांच सौ किलोमीटर का सफ़र करना होता है इसलिए हम एक नियत गति से हाइवे पर चलते रहते हैं। गुप्ता जी के दही बड़े की दुकान अक्सर पीछे छूट जाती है। 

उन्नीस सौ सात में आगरा से आकर खेमचंद जी गुप्ता ने ब्यावर और बर के बीच सेंदड़ा गांव में दही बड़े की दुकान खोली थी। 

अब ये दुकान हाइवे पर है। इसे राहुल गुप्ता संभालते हैं। दुकान के आगे एक तिपहिया से सकोरे उतारे जा रहे थे। मैंने पूछा "इतने सारे" 

राहुल कहते हैं "हमारे दही बड़े, रबड़ी और कलाकंद मुंबई तक जाते हैं। इन सकोरों में ताज़ा बने रहते हैं। हम हर रोज पार्सल तैयार करते हैं।" 

दुकान के भीतर कुछ पोस्टर लगे हैं। इनमें राजनीति से जुड़े जुड़े लोगों की तस्वीरें हैं, जो गुप्ता जी के दही बड़े खाकर गए। कुछ एक ख़बरें हैं, जो इस दुकान के इतिहास के बारे में बताती हैं। 

परिवार के लोगों की तस्वीरें भी हैं। उनमें एक अलग दिखते हैं। मैं पूछता हूं ये कौन हैं। राहुल जी बताते हैं कि जब पड़ दादा जी ने ये दुकान शुरू की थी, तब ये छोटे बच्चे थे। ये दुकान पर काम करने लगे। पड़ दादा और दादा लोग चल बसे लेकिन ये अभी तक हैं। इनकी उम्र सौ साल के पास हो चुकी है। इनका नाम है घासी जी गुर्जर। 

दही बड़े सचमुच बहुत ताज़ा और स्वादिष्ट थे। मुझे पार्सल की बात पर विश्वास हुआ कि कोई इस राह आता होगा तो मैं कहूंगा मेरे लिए लेते आना।

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