लेकिन नियति।

सब ख़राब और अच्छे काम नियति के खानों में रखे जा सकते थे। सब योजनाओं को नियति के हवाले किया जा सकता था। इससे भी कड़ी बात थी कि हर सम्पन्न कार्य पर नियति की मोहर लग जाना। इससे इनकार न कर पाने की बेबसी और अधिक बुरी थी।

कहीं कोई उदास ख़्वाब लिए चुप बैठे होते। प्यार से ऊबकर प्यार तलाशते जैसे तम्बाकू से ऊबकर फिर से तम्बाकू सुलगाते। कहीं कोई आहट होती दिल पहले ही मान लेता कि ये वो नहीं है।
समय का कारवां गुज़रता रहता। बस।

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