रूठी रानी

उमादे उपन्यास क्यों पढ़ना चाहिए? 

रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध उमादे भटियानी के जीवन पर डॉक्टर फतेहसिंह भाटी का उपन्यास पाठकों के बीच है। डॉ भाटी ने इस ऐतिहासिक उपन्यास का शीर्षक उमादे रखा है। 

उमादे केवल रूठी रानी या भटियाणी माने भाटी घराने भर की नहीं है। वह एक सम्पूर्ण स्त्री है। पुरुषप्रधान सामाजिक व्यवस्था में रूठने की इकहरी छवि में स्मृत की जा रही स्त्री के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को पाठकों के समक्ष रखना इस रचना का उद्देश्य है। 

कथावस्तु-
पंद्रहवीं शताब्दी के पहले दशक से छठे दशक के मध्य की कहानी है। जैसलमेर राजघराने की राजकुमारी उमादे इसका केंद्रीय पात्र है। राव मालदेव के काल को राजपूताने का शौर्यकाल कहा जाता है। उमादे इन्हीं मालदेव की ब्याहता थी। ये उमादे के स्त्री स्वाभिमान, सम्मान और अधिकार की रक्षा की कहानी है। ये उपन्यास उमादे के जन्म से आरम्भ होकर राव मालदेव की मृत्यु पर सम्पन्न होता है। 

चरित्र चित्रण-
उमादे एक स्वाभिमानी स्त्री है। राव मालदेव अत्यधिक भोगविलास में निबद्ध रहने वाला वीर शासक है। भारमली दासी है किंतु असहाय परिस्थिति में भी अपनी राजकुंवरी के लिए अत्यधिक समर्पित है। 

भारमली, बाघा से प्रेम करती है किन्तु दासी होने के कारण किसी प्रकार की पहल नहीं करती। बाघा वीर योद्धा है। वह अपरिहार्य परिस्थिति में धैर्य और वचन से बंधा रहने वाला है। 

राव मालदेव की अन्य रानियां और महल की सेविकाएं अपने-अपने स्वार्थों से प्रेरित कुटिल चालों और षड्यंत्रों में डूबी रहने वाली हैं। 

कथोपकथन-
इस उपन्यास लेखन में यही सबसे कठिन कार्य रहा होगा, जिसे लेखक ने अपने कौशल से सम्भव कर दिखाया है। 

डॉ भाटी के पास इस रेगिस्तानी जीवन के व्यवहार, जीने की जुगत, चालाकियों, धोखों और प्रेम सहित हर कर्म और अनुभूति की भाषा है। वे किसी अनुवाद अथवा कयास पर निर्भर नहीं है। उनके पास प्रामाणिक भाषा है, जिसे उन्होंने खुद जीकर सीखा है। इसलिए पात्रों के संवाद इतने सुघड़ है कि कोई भी पाठक संदेह नहीं कर सकता। 

कथोपकथन में स्त्री मन के अनेक रूप लेखक के लिए चुनौती है। रानियों का पदानुक्रम है, दासियों की अनकही पीड़ा और लालच हैं। माने हर स्त्री के मन के अनुरूप संवाद रचना लेखक का अपरिमित धैर्य से लिखने का हुनर है। 

देशकाल-
कथानक में पाठक स्थान, भूगोल, प्रकृति, शहर-कोट रचना, महल विन्यास आदि व्यापक रूप में उपस्थित है। पाठक कथा पढ़ते समय घटना के साथ चलता है। लेखक एक पूरा वातावरण रचते हैं, जो कि अत्यन्त हृदय को बांधने वाला है। कुछ एक बार वातावरण की अप्रतिम रचना के कारण पाठक के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। 

भाषा शैली-
ऐतिहासिक उपन्यास कहन की शैली प्रथम दृष्टि में उबाऊ समझी जाती है। लेकिन उमादे की शैली द्रुतगति से घट रहे इतिहास को साकार करती है। राजमहलों की कुटिल चालों, प्रेम की गहरी छवि, कामक्रीड़ा के श्लील चित्र और युद्धों का वीभत्स और हृदविदारक दृश्य पाठक सहज अनुभूत कर सकता है। 

भाषा सरस है। शैली में बातपोशी का हल्का पुट इसे और अधिक मीठा बना देता है। 

उद्देश्य-
एक स्त्री की इकहरी अल्पांश स्मृति को उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व के साथ उकेरना। ये प्रत्येक स्त्री के सम्मान और अधिकार के पक्ष में बोलना है। 

आप इस उपन्यास को मंगवाईये। पढ़िए। आपको इसमें वह दिखेगा, जो पुरुष दम्भ की झूठ की पताका के नीचे दबे सच को उद्घाटित करता है। जो स्त्रियों के अनगिनत दुखों का हरम हैं। वे दुःख  जो कभी-कभी तपकर इतने कड़े हो जाते हैं कि उनको छूने से कुछ भी जल सकता है। अहंकार भी। 

उपन्यास के प्रकाशक हैं भारतीय ज्ञानपीठ। 
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तस्वीर उपन्यास लेखक डॉ फतेह सिंह भाटी की है।

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