Skip to main content

हरे रंग के आईस क्यूब्स



[2]

"हाँ भईया गाडी जा री है गढ़ड़े"

मेरा रेगिस्तानी क़स्बाई बचपन फेरी की इस आवाज़ से भरा हुआ है। फिर थोड़ा रुककर "मिरचोंओओओं...." सायकिल के करियर और कैंची के बीच मिर्च की बोरियाँ रखे हुये ऊकजी दिख जाते थे। "मिरचोंओओओं.... मथाणीया री मिरचों। छेका आओ भाई गाड़ी जा री है गढ़ड़े" मिर्च रेगिस्तान के भोजन में इस तरह शामिल है जैसे हमारे जीवन में सांस। घर में सूखी लाल मिर्च है माने हर तरह का साग रखा हुआ है। लाल मिर्च नहीं माने जीवन की रसद खत्म हो गयी है। अच्छी लाल मिर्च मथानियां से ही आती थी। खाने में थोड़ी मीठी भी लगती थी। कथा संसार में सूखे मेवे बेचने वाले फेरीवाले हुआ करते थे लेकिन हमारा मेवा यही था। मिर्च और कच्चे लहसुन की चटनी घर में बन जाती तो माँ कड़ी नज़र रखती थी। सलीके से राशनिंग होती थी। ये हमारा सूखा मेवा था या नहीं मगर मोहल्ले भर की औरतें ऊकजी को शिकायत करती "हमके मोड़ा आया" ऊकजी कहते- "सरकारी नौकरी है टैम ही कोनी मिले"

कलल्जी के पालिए के पास ऊकाराम कृषि फार्म का बोर्ड देखते ही में लाल मिर्च की याद से भर उठता हूँ। मुंह में चटनी का स्वाद आने लगता है। हाइवे की सड़क के दूजी तरफ की ज़मीन फार्म हाउस की तरह दिखने लगी है। कभी ये खुले खेत थे लेकिन अब यहाँ बाड़े बन गए हैं। इन बाड़ों में बड़ी गाड़ियाँ खड़ी रहने लगी हैं। ये तेल की खोज में लगी कंपनियों की है। स्थानीय लोगों के पास नया धंधा आया है जिसे बाड़ेदार कहा जा सकता है। सड़क किनारे की अपनी ज़मीन को बाड़ा बनाकर किराए पर दे दिया है।

बेटा पूछता है ये इतनी गाडियाँ यहाँ क्यों आई हैं? मैं पूछता हूँ- "लुटेरों के बारे में सुना है?" बेटा कहता है- "हाँ" उसके हाँ कहने पर मैं कहता हूँ- "इस दुनिया में बहुत लुटेरे हैं। वे दूजों की ज़मीन से तेल कोयला, गैस, धातुएं निकाल लेना चाहते हैं। अब लुटेरे वापस आ गए हैं। इनसे हमारे नए राजा मिले हुये हैं। ये हमारी ज़मीन को लूट लेंगे" वह अचंभे से पूछता है- "ज़मीन को कैसे लूट सकते हैं? वह तो यहीं रहेगी।" मैं उसे कहता हूँ- "तुम जब बड़े होवोगे तब समझोगे कि ज़मीन ही नहीं आत्मा को भी लूटा जा सकता है"

मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ तो बेटे को रेलवे पटरी की ओर देखते हुये पाता हूँ। रेल की पटरी बाड़मेर से बालोतरा तक सड़क के साथ ही चलती है। लेकिन हमें तो कवास तक जाना था।

उत्तरलाई हवाई अड्डे की तारबंदी दिखने लगती है। मैं पूछता हूँ "दुशु तुमने बार्डर फिल्म देखी है?" वो पूछता है- "कौनसी?" 
"वही जिसमें सन्नी देओल होते हैं।"
"वो उसमें क्या करते हैं?" 
"वो कहते हैं कि मैं कोई चोर कर्मचारी नेता नहीं हूँ कि देश पर संकट आते ही छुट्टी चला जाऊँ" 
दुशु कुछ नहीं कहता।

हमारी बाइक उत्तरलाई स्टेशन के जिगज़ैग मोड़ से गुज़रने को होती है और मैं देखता हूँ कि लोंगेवाला सेक्टर में भारी लड़ाई छिड़ी हुई है। सन्नी देओल और उनके साथी मोर्चे पर डटे हुये हैं। इधर उत्तरलाई एयरबेस में विंग कमांडर जैकी श्रोफ अपनी खुली हथेली में बंद मुट्ठी ठोक रहे हैं। उनकी बेचैनी बढ़ी हुई है। उनके पास रात को हवाई जहाज उड़ाने की सुविधा नहीं है। इसलिए सुबह होने का इंतज़ार कर रहे हैं। इकहत्तर के युद्ध में विंग कमांडर एंडी बाजवा यहाँ उत्तरलाई बेस में कमांड कर रहे थे। लोगों का कहना था कि उनकी टीम ने पाकिस्तान पर खूब बमबारी की थी।

उत्तरलाई स्टेशन पर बहुत सारे हेंगर हैं। लोग इनको भूमिगत बैरक समझते हैं जहां हवाई जहाज रखे जाते हैं। बचपन की कहानियों में हम अंदाजा लगाया करते थे कि क्या हवाई जहाज ज़मीन के अंदर चलते हुये हमारे घर के नीचे तक आ जाते हैं? हो सकता है कभी उनकी चोंच ज़मीन फोड़कर गली में निकल आए।

बचपन बहुधा एक उम्र को संबोधित हुआ करता है लेकिन असल में बचपन का उम्र से कोई वास्ता नहीं है। कुछ बरस पहले एक दिन उत्तरलाई स्टेशन पर दिहाड़ी मजदूरी कर रहे आस-पास के किसान काम करते हुये थक गए थे। उनेक पास ही एक लड़ाकू जहाज खड़ा था। उनको उस जहाज की चोंच पसंद आ गयी। तो पंद्रह बीस मजदूर कृषकों ने दुपहरी करने के बाद एक लंबा तार उठाया और उसे हवाई जहाज की चोंच से चोंच की तरह लड़ा दिया। पता नहीं उस में क्या था कि करंट के झटके से सभी मजदूर दूर जाकर गिरे। थोड़ी देर बाद उठे, अपने पिछवाड़े झाड़े और काम पर लग गए।

मैंने भी एंडी बाजवा साब की तरह बेचैनी से भरा सड़क का मोड़ लिया। इतना सोचते याद करते मुसकुराते हुये हमारी बाइक गुरुद्वारा तक आ गयी। मैंने ऊंची आवाज़ में जैकारा लगाया। "जो बोले सो निहाल..." लेकिन मेरे प्यारे निहंग गायब थे। मैंने मुड़कर पीछे देखा तो दुशु मुस्कुरा रहा था। मैंने कहा- "बादशाओं रब्ब नु कदी नी भूलना... बोलो सत्त श्री अकाल"

ईश्वर हमारे भीतर है। वह ब्रह्म है। ब्रह्म मैं हूँ। अहम ब्रह्मास्मि। जिस रूप में स्वयं को स्वयं की याद दिला सको दिलाते रहो। सत्त श्री अकाल बोलने में दुशु को मजा आया। लेकिन दो बार बोलकर उसे शर्म आने लगी कि हम बाइक पर बैठे हुये ये क्या कर रहे हैं। मैंने उससे पूछा "तुमने निहंग देखे हैं?" उसने कहा नहीं। मैंने कहा हम कभी चलेंगे। उनके नीले रंग के घेरदार वस्त्र मुझे बहुत लुभाते हैं। उनके चेहरे का नूर अलग होता है। कॉन्फिडेंट शब्द को ठीक उनके व्यवहार में पढ़ा जा सकता है।

उत्तरलाई रेलवे स्टेशन पर दक्षिण अफ्रीकी देश से आया कोयले का चूरा उड़ रहा है। हर सप्ताह कत्थई लाल रंग के बीस डिब्बों वाली एक रेल गाड़ी आकर उतरलाई स्टेशन पर रुकती है। दूर देश की खदानों का कोयला ट्रकों में लादा जाता है। काले रंग की गर्द रेलवे ट्रेक से होती हुई चारों और बरसने लगती है। ये कोयला हाल ही में रेगिस्तान में उग आये थर्मल बिजली कारखानों तक जाता है। दिन के सवा दो बजने को है, जोधपुर जाने वाली पेसेंजर के निकलने का समय है। उन्नतीस रुपये में दो सौ दस किलोमीटर का सफ़र, डिब्बे भरे हुए और सफ़र से बंधी आशाएं सरपट भागती हुई।

उत्तरलाई स्टेशन से तीन सौ मीटर दूर एक नाडी है। हमारे यहाँ तालाब को नाडी कहा जाता है। इसी नाडी की ओर रेल और हम एक दिशा में चल रहे हैं। सोचता हूँ कि घर से बाहर आते ही हम बदलने लगते हैं। पुराने सुख-दुख के बीच नए रंग की कोंपलें मन की धरती को फोड़ते हुए खिलने लगती है।

बेटा कहता है- "पापा रेल से आगे निकलें." मैं पूछता हूँ- "क्यों ?" वह कहता है- "मजा आएगा." इसका अभिप्राय हुआ कि किसी को पछाड़ कर आगे निकलने में मजा है। मेरे हाथों में बहुत से हाथ थे वे बारी-बारी से मुझे पीछे छोड़ते हुए आगे निकल गए थे। उनको भी बहुत मजा आया होगा? फिर मैं सोचता हूँ कि सामने की नाडी तक अगर हम पहले पहुंचे तो जो सोचा है, वह हो जायेगा। मेरा बचपन भी अभी ज़िंदा है। मैं रेल से होड़ करके जानना चाहता हूँ कि क्या उसके पास ऐसा दिल बचा है? जो मुझे याद करता हो।

रेल के पास सैंकड़ों पहिये हैं। मनुष्य मन के पास अनगिनत पहिये हैं। जिनपर सवार मन सरपट दौड़ता जाता है। रेल पर सवार होकर कितने ही सुख सात समंदर पर चले गए हैं। मन के पहियों पर सवार होकर हम उन सुखों की टोह लेते रहे।

सड़क के किनारे जिप्सम खोद लिए जाने के कारण चौकड़ियाँ बनी हुई है. उनमे बरसात का पानी भरा है दूर से देखो तो लगता है कि फ्रीज़र में बर्फ 
जमाने के लिए हरे रंग के पानी की विशाल आईस ट्रे रखी है. सर्दियों तक ये पानी बचा रहा तो हरे रंग के आईस क्यूब्स कितने सुन्दर दिखेंगे। प्यार में आदमी ऊपर उठ जाता है। वह एक ड्रोन हो जाता है। जो सामान्य निगाह नहीं देख पाती उसे प्यार भरी निगाह देख लेती है।

तुमने कभी प्यार किया है तो तुम हरे रंग के आइसक्यूब देख सकते हो। 
* * *

Popular posts from this blog

लड़की, जिसकी मैंने हत्या की

उसका नाम चेन्नमा था. उसके माता पिता ने उसे बसवी बना कर छोड़ दिया था. बसवी माने भगवान के नाम पर पुरुषों की सेवा के लिए जीवन का समर्पण. चेनम्मा के माता पिता जमींदार ब्राह्मण थे. सात-आठ साल पहले वह बीमार हो गयी तो उन्होंने अपने कुल देवता से आग्रह किया था कि वे इस अबोध बालिका को भला चंगा कर दें तो वे उसे बसवी बना देंगे. ऐसा ही हुआ. फिर उस कुलीन ब्राह्मण के घर जब कोई मेहमान आता तो उसकी सेवा करना बसवी का सौभाग्य होता. इससे ईश्वर प्रसन्न हो जाते थे. नागवल्ली गाँव के ब्राह्मण करियप्पा के घर जब मैं पहुंचा तब मैंने उसे पहली बार देखा था. उस लड़की के बारे में बहुत संक्षेप में बताता हूँ कि उसका रंग गेंहुआ था. मुख देखने में सुंदर. भरी जवानी में गदराया हुआ शरीर. जब भी मैं देखता उसके होठों पर एक स्वाभाविक मुस्कान पाता. आँखों में बचपन की अल्हड़ता की चमक बाकी थी. दिन भर घूम फिर लेने के बाद रात के भोजन के पश्चात वह कमरे में आई और उसने मद्धम रौशनी वाली लालटेन की लौ को और कम कर दिया. वह बिस्तर पर मेरे पास आकार बैठ गयी. मैंने थूक निगलते हुए कहा ये गलत है. वह निर्दोष और नजदीक चली आई. फिर उसी न...

टूटी हुई बिखरी हुई

हाउ फार इज फार और ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउट दोनों प्राचीन कहन हैं। पहली दार्शनिकों और तर्क करने वालों को जितनी प्रिय है, उतनी ही कवियों और कथाकारों को भाती रही है। दूसरी कहन नष्ट हो चुकने के बाद बचे रहे भाव या अनुभूति को कहती है।  टूटी हुई बिखरी हुई शमशेर बहादुर सिंह जी की प्रसिद्ध कविता है। शमशेर बहादुर सिंह उर्दू और फारसी के विद्यार्थी थे आगे चलकर उन्होंने हिंदी पढ़ी थी। प्रगतिशील कविता के स्तंभ माने जाते हैं। उनकी छंदमुक्त कविता में मारक बिंब उपस्थित रहते हैं। प्रेम की कविता द्वारा अभिव्यक्ति में उनका सानी कोई नहीं है। कि वे अपनी विशिष्ट, सूक्ष्म रचनाधर्मिता से कम शब्दों में समूची बात समेट देते हैं।  इसी शीर्षक से इरफ़ान जी का ब्लॉग भी है। पता नहीं शमशेर उनको प्रिय रहे हैं या उन्होंने किसी और कारण से अपने ब्लॉग का शीर्षक ये चुना है।  पहले मानव कौल की किताब आई बहुत दूर कितना दूर होता है। अब उनकी नई किताब आ गई है, टूटी हुई बिखरी हुई। ये एक उपन्यास है। वैसे मानव कौल के एक उपन्यास का शीर्षक तितली है। जयशंकर प्रसाद जी के दूसरे उपन्यास का शीर्षक भी तितली था। ब्रोकन ...

स्वर्ग से निष्कासित

शैतान प्रतिनायक है, एंटी हीरो।  सनातनी कथाओं से लेकर पश्चिमी की धार्मिक कथाओं और कालांतर में श्रेष्ठ साहित्य कही जाने वाली रचनाओं में अमर है। उसकी अमरता सामाजिक निषेधों की असफलता के कारण है।  व्यक्ति के जीवन को उसकी इच्छाओं का दमन करके एक सांचे में फिट करने का काम अप्राकृतिक है। मन और उसकी चाहना प्राकृतिक है। इस पर पहरा बिठाने के सामाजिक आदेश कृत्रिम हैं। जो कुछ भी प्रकृति के विरुद्ध है, उसका नष्ट होना अवश्यंभावी है।  यही शैतान का प्राणतत्व है।  जॉन मिल्टन के पैराडाइज़ लॉस्ट और ज्योफ्री चौसर की द कैंटरबरी टेल्स से लेकर उन सभी कथाओं में शैतान है, जो स्वर्ग और नरक की अवधारणा को कहते हैं।  शैतान अच्छा नहीं था इसलिए उसे स्वर्ग से पृथ्वी की ओर धकेल दिया गया। इस से इतना तय हुआ कि पृथ्वी स्वर्ग से निम्न स्थान था। वह पृथ्वी जिसके लोगों ने स्वर्ग की कल्पना की थी। स्वर्ग जिसने तय किया कि पृथ्वी शैतानों के रहने के लिए है। अन्यथा शैतान को किसी और ग्रह की ओर धकेल दिया जाता। या फिर स्वर्ग के अधिकारी पृथ्वी वासियों को दंडित करना चाहते थे कि आखिर उन्होंने स्वर्ग की कल्पना ही क्य...