आओ शिनचैन लड़कियों के शिकार पर चलें

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हम उसे केवल छूकर देखना चाहते थे। हो सकता है पल भर उसके साथ होने की इच्छा थी। संभव है केवल घड़ी भर उसके साथ जी लेने का मन था। किसी को पाने की कामना का कोई बहुत दीर्घकालीन उद्धेश्य हो ज़रूरी नहीं है। सम्बन्धों में, चाहनाओं में, इच्छाओं में, आवश्यकताओं में कुछ भी स्थायी नहीं होता।

रेल से होड़ करने की चाह रखने वाला दस साल का लड़का कुछ एक मिनट में उस चाहना को भूल गया। नाडी के बाहर बबूल के नीचे बैठे देवताओं के पास से एक जीप होर्न बजाते हुए निकली। विकट तो नहीं पर मोड़ है। यहाँ पर हॉर्न देना अच्छा है। चाहे वह देवताओं के लिए हो कि सामने से आने वालों को सचेत करने के लिए हो।

हम जिप्सम हाल्ट पहुँच गए। रेल पीछे छूट गई थी। दुशु रेल को ही देख रहा था लेकिन आश्चर्य कि उसे रेल को हरा देने में मजा नहीं आया।

रेल पास ही है। मैं नेशनल हाईवे पर रफ़्तार नहीं बढ़ाता हूँ। मुझे रेल से होड़ में कोई दिलचस्पी नहीं। इसलिए कि जब आप किसी से मुक़ाबले में उतरते हैं तब केवल एक स्पर्धा में कीमती जीवन बीत जाता है। मुझे ऐसा न करने का फल मिल गया। सड़क पर हलचल दिखाई दी। मेंने कहा- "दुशु उसे देखो" वह मेरी बगल से सड़क पर देखने लगा। दो फीट लंबी छिपकली सड़क पार कर रही थी। इसे स्थानीय भाषा में गोह कहा जाता है। वैसे लोग इसे डेजर्ट मॉनिटर लेजार्ड के रूप में पहचानते हैं। रेगिस्तान में बहुतायत में हैं। हम जब तक करीब पहुंचे गोह देसी बबूल की छांव तक पहुँच गयी।

गोह का यहाँ बेहिसाब शिकार किया गया। कहावतों में कहा जाता है "गोह री मौत आवे तो भीलों रे घरे भाटा भावे" भील रेगिस्तान और इसके पहाड़ी इलाके की मार्शल कौम है। ये दिलेर लोग कुदरत के बहुत करीब के हैं। कृष्ण भक्ति पर कोई भी चाहे जितना हक़ जमा ले लेकिन वास्तविक कृष्ण भीलों के थे और उनके ही रहेंगे। कानूड़ों इस आदिवासी समुदाय का नौजवान था, जिसका बाद में कुलीन कही जाने वाली जातियों ने अधिग्रहण कर लिया। भील गोह का शिकार करते रहे हैं। वे इसकी खाल उतार कर बेच देते थे। इसकी खाल से जो जूतियाँ बनती उनकी चमक और डिजायन बेहद आकर्षक होती थी। वन्यजीव कानून के जानकार होने के बाद गोह की खाल से जूतियाँ बननी बंद हो गयी। उस कहावत का अर्थ है कि जब किसी की मृत्यु आती है तब वह अपने सबसे शक्तिशाली दुश्मन को उकसाता है।

रेल, परी लोक को जाती हुई सी है। रंग बिरंगे ओढने खिड़कियों से झाँकते दिखते हैं। रेल डिब्बों के दरवाज़ों के पायदानों पर बैठे हुए लड़के, हत्थियाँ पकड़े हुए नौजवान रेल के साथ उड़े जाते हैं। चौमासा है इसलिए हल्की उमस में बाहर से आती हवा उनके मन को ठंडा करती होगी। मुझे भी गर्मी नहीं लग रही। एक हाथ से बेटे को अपने पास सरकाता हुआ कहता हूँ- "ध्यान से बैठो" मेरे पापा भी सायकिल चलाते हुए रास्ते भर मुझे हाथ से छू कर टटोलते रहते थे। उनकी नज़र जरूर सामने होती थी लेकिन मन सायकिल के करियर पर ही अटका रहता था। हर आदमी के पास एक सुखों की पोटली होती है। जिसे वह उम्र भर ढ़ोने का साहस रखता है। इसी साहस को महाभारत में धृतराष्ट्र कहा गया है।

बेटे से अविश्वसनीय घटनाक्रम वाली कहानी सुन कर मैं खो गया था। मुझे अफ़सोस हुआ कि इसके विस्मय को छल लिया गया है। अमेरिकी कार्टून करेक्टरों में नए विस्मयबोध की लालसा में निरंतर रचे गए अतिरंजित हादसों और उनसे उबरने के तरीकों को देख कर मेरे बेटे में स्वभाविक आनंददायी घटनाओं के प्रति रूचि नहीं बची है। आशा के लिए निराशा को रचना एक बाध्यता है। इसी बाध्यता ने कई काल्पनिक शैतानी दुनिया रची और एलियंस को चित्रित किया। उन पर जीत के लिए सुपरमैन को रचा। हम सुपरमैन से ऊब गए तो बैटमैन, शेडोमैन, हीमैन, होलोमैन, स्पाइडरमैन जैसे असंख्य चरित्रों के निर्माण को बाध्य हुए। व्यक्ति एक रहस्यमयी शक्ति चाहता है ताकि वह रोज़मर्रा के जीवन में एक अद्भुत रोमांच को तलाश सके।

दूरदर्शन पर नब्बे के दशक में ऐसा ही एक भारतीय पात्र भी बच्चों के मुख्य आकर्षण का केंद्र था। देश भर में उसे देख कर बच्चों ने अपने घरों की छतों से छलांगे लगा दी थी। मैं जिस स्कूल में पढ़ा करता था, उसके सामने तापड़िया जी का घर था। मैंने सुना कि उनके घर से भी एक बच्चे ने कथित रूप से इसी धारावाहिक को देखने के बाद अपने पांवों पर बारदाना बाँध कर दो मंजिल से छलांग लगा दी। यह एक सम्मोहन है। अद्वितीय और अलौकिक शक्तियों को प्राप्त करने की आदिम चाह का आधुनिक रूप है। गंभीर किस्म का अफ़सोस ये है कि इसका लक्षित वर्ग बेहद कोमल और कच्चा है। इसलिए हमें अपने बच्चों को गोबर ढोते गुबरैले, गुंगले, गोह, दूधिया छिपकली जैसे अपने सहजीवियों से मिलवाते रहना चाहिए।

जिप्सम हाल्ट से आगे सड़क बायीं और मोड़ लेती है। सड़क किनारे दो एक प्याऊ आती है। सामने नया बना पुल दिखाई देता है। एक फ़ेक्ट्री के बाहर प्लास्टर से बनी शीट्स सूखती दिखाई देती है। आस पास के इलाके में जिप्सम काफी है। इसे स्थानीय लोग धधड़ा कहते हैं। उसी धधड़े को प्योर करके "प्लास्टर ऑफ पेरिस" कहे जाने वाले पाउडर का कारख़ाना है।

मैं पीछे मुंह करके दुशु को आह भरने के अंदाज में कहता हूँ "काश हम बाप-बेटे, शिनचैन और उसके पापा की तरह लड़कियों के शिकार पर निकले होते" वह मुस्कुराया नहीं उसकी मुद्रा बेहद गंभीर हो गयी कि मैंने गलत प्रस्ताव दिया है। इस उम्र में उसने इस तरह के कार्यक्रमों के प्रयोजन जान लिए हैं। उसने मेरी इस हरकत पर मुझे एक वरिष्ठ नागरिक की तरह समझाया। "आपको क्या हुआ है? वह एक कार्टून है।" सच में आठ-दस साल के बच्चों के लिए रचे गए ये जापानी चरित्र उनका सहज बचपन छीनते जा रहे हैं। मैं भी शिनचैन को बेहद प्रेम से देखता रहा हूँ। शिनचैन अपने पापा से कहता है "ओ हो मैंने सोचा आप मेरे साथ कबड्डी खेलोगे मगर आप तो सिर्फ मम्मा के साथ खेलते हो..." इतना कहते ही उसके गालों पर खिलते सूरज जैसी लाली का स्केच बन जाता है।

मुझे आज के दिनों की तुलना अपने बचपन से नहीं करनी चाहिए। ऐसा सोचते हुये बाइक नदी के पुल पर चढ़ जाती है। ऐसी नदी जो सौ साल में एक बार बहती है। 
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