कभी सोचो इस तरह


एक नेक सलाह ख़ुद के लिए लिखी है, भले ही कुछ भी बदलता नहीं है. अक्षर अक्षर मांडना, साँस साँस सोचना कि कितना सफ़र बाकी है. फिर उम्मीद भी कि दिमाग एक दिन भूल जायेगा सब वस्ल और फ़िराक की बातें. फ़िलहाल सब कविता-कहानी नाकाम, सब मुश्किल, सब हैरान और सब परीशां...

कभी सोचो इस तरह
कि ऐसी भी क्या बात टूटी है तुम पर
हर कोई उठाता है दुःख
मगर फिर भी हर कोई करता है प्रेम
कि हर किसी को मुश्किल है ज़िन्दगी.

खुश हो जाया करो, आंसू बहाने के बाद
कि तुमने देखा है किसी दीवार को
मौसमों के सितम पर बहाते हुए आंसू.

कि हज़ार मुश्किलों के बाद भी
कुछ चीज़ें रो नहीं पाती हैं उम्र भर.
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