उसी की शर्तों पर




प्रेम को लाख सरल कहो, मगर हज़ार आफ़तें हैं।

बोरोसिल का ग्लास खाली हो तो लुढ़क जाता है। अगले झौंके में चप्पल उड़ जाते हैं। ज़रा और बेख़याल रहो तो स्नेक्स का डिब्बा लुढ़कने लगता है। पूनम की रात है। हवा तेज़ है।

रेगिस्तान में उसी की शर्तों पर जीना पड़ता है।

[Painting courtesy : Jill Karsner]