उदासी के फूल

वे किन बातों से खिलते हैं, ये नहीं मालूम।

लिखता हूँ। लिखे हुए को पढ़ता हूँ तो लगता है कि ये ठीक है। कुछ देर आसमान को ताकता हूँ। कुछ हवा महसूस करना चाहता हूँ। उमस न होती तो क्या करता? ये सवाल आते ही ठहर जाता हूँ। कि सचमुच ऐसा क्या करना था कि मौसम सुहाना होता तो अच्छा लगता। कुछ भी तो नहीं।
कभी कोई किताब साथ होती है। एक लैपटॉप के किनारे लगाने वाली एलईडी स्टिक है। उसे ऑन कर देता हूँ। कुर्सी की पुश्त से उसका क्लिप अटका देता हूँ। रोशनी किताब पर गिरती है। मैं अक्षरों को देखता हूँ। आस पास अंधेरा पसरा रहता है। कि अचानक किसी आवाज़ सरसराहट से अपने पांवों का सोचता हूँ कि क्या वे धरती से ऊपर हैं?
पांव टेबल पर या पास रखी चारपाई पर रखे होते हैं। एक बार नीचे झांकता हूँ। छछूंदर घूम रहा है। वह अपनी नाक से कुछ टटोल रहा है। मैं क्यों अचानक चौंका? क्या हम कभी ख़ुद को बचा सकते हैं? शायद नहीं फिर भी हम चाहते हैं कि बचे रहें।
खुद से कहता हूँ सब ठीक है। लिखे हुए को पढ़ता हूँ। सोचता हूँ कि ये किसके लिए लिखा है। इसे कहीं क्यों शेयर करना है। इसे पढ़वाने से क्या होगा। कोई ठीक जवाब नहीं मिलता। लिखावट में सब वे ही बातें हैं। रोज़मर्रा की बातें। अनमना कौन नहीं होता। उदासीन कौन नहीं हो जाता।
अचानक हर बात से उदासीन हो जाना कैसा है। किस बात से मन इस तरह उचाट होता है कि हर वो काम जो किया, वह फालतू लगने लगता है। कुछ नया नहीं करना है। हवा के साथ उड़कर आती सूखी पत्ती की खरखराहट सुनकर फिर ठहर जाता हूँ।
ठीक ही तो है। लम्हे झड़ रहे हैं।
उदासी की एक बड़ी बात जो रोज़ होती है। वह सबसे अधिक उदासीन करती है कि लिखकर बाँट देने के बाद ये मुझे अच्छा न लगेगा। मैं इसे मिटा दूंगा। मैं इसे छुपा लूंगा। लेकिन।
पुरानी लिखावट बरबाद लिखावट है। जैसे हर काम को व्यर्थ जानना। इसलिए पुराने से बाहर आना सोचता हूँ। ड्राफ्ट्स देखता हूँ। कहानियां ठीक की थी, मिटा दी। नया लिखा है, पर उसके लिए प्रेम नहीं है। जैसे चुपचाप चले मगर कहीं जाना न था।
बेरी को देखता हूँ। देखना चाहता हूँ कि क्या वहां चिड़ियां बैठी हैं? कुछ नहीं दिखता। केवल अंधेरे में अंधेरे से बनाया हुआ एक चित्र दिखाई देता है।
मैं मुस्कुराता हूँ। सो जाएंगे। सुबह की नींद में बेढब सपने आएंगे। जागूँगा तो लगेगा कि सोना हुआ ही नहीं। बदन अकड़ा है। पीठ जकड़ी है। गर्दन में ऐंठन है।
लेकिन सुबह कुछ देर बिना सोचे बैठा रह सकूँगा। यही सबसे अच्छा होता है।

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