बहुत पुरानी तस्वीर

फिर मचलने लग गई दिल में हज़ारों ख़्वाहिशें आप की तस्वीर एक बरसों पुरानी देख ली।

परवेज़ मेहदी साहब गा रहे हैं। आधा चाँद है। हवा बन्द है। किसकी तस्वीर याद आई? मैं सोचता हूँ तो कोई तस्वीर याद नहीं आती। किसी की भी नहीं। हम जिनसे खफ़ा होकर बिछड़ जाते हैं। स्मृति से उनकी तस्वीरें भी मिट जाती हैं क्या?
एक लड़का, कभी एक आदमी और कभी एक अधेड़ खड़ा याद आता है। वह जिस से मिलेगा या जिस से मिल चुका है, वो दिखाई नहीं देता। केवल चौराहे के लैम्पपोस्ट, दुकानों की निऑन लाइट्स, ऑटो वाले और कैब वाले दिखाई देते हैं।
वे सब जिनसे कोई शिकवा न था, सब स्मृति में बचे हुए हैं। जैसे रास्ते, मॉल्स, कहवाघर और अजनबी बिस्तरों वाली होटेल्स। लेकिन वे जो मिले, जिनको गले लगाया, चूमा, जिनके साथ रहे। उनकी सूरतें तस्वीरों से क्यों गायब है।
मैं अक्सर मुड़कर नहीं देखता। किसी के पीछे भी नहीं झांकता। इसलिए कि हर पल एक नया आदमी हमारे साथ होता है। वह कहां क्या जी चुका है, उससे मुझे कोई लगावट नहीं होती लेकिन वह जो अभी मेरे साथ है, कल कहाँ होगा? ये सोचकर अक्सर घबरा जाता हूँ। हालांकि पुरानी तस्वीरों की स्मृति से सब ज़िंदा चेहरे गायब हैं और मुझे इसका अफ़सोस भी नहीं।
हम तस्वीरों में किसी का होना नहीं चुन सकते। ये अपने आप होता है। ऐसा कहकर खुद को समझाता हूँ। लेकिन अचानक किसी फ़िल्मी दृश्य की तरह नायक को चूमती हुई नायिका याद आने लगती है। कभी एक अधिकार से हम हाथ थामे साथ चलते हैं, उसी तरह अधिकार से कहकर चूमना तस्वीरों से नहीं मिट पाता। ऐसे ही अनेक बार का साथ अक्सर तस्वीरों में लगभग खोजा नहीं जा सकता।
कभी-कभी मैं वो तस्वीरें भी देखता हूँ जो अभी तक खींची न जा सकी। इसलिए कि वह लम्हा अभी आया नहीं है। अगर वह तस्वीर खींची जाएगी तो मैं कहूंगा कि चले जाने के बाद भी हालांकि ज़िन्दगी चलती रहेगी मगर तुम ईमान से साथ रहे तो ये तस्वीर कभी बरसों पुरानी न होगी।
मेरे पास सोचते रहने के सिवा कोई काम नहीं है। कभी कोई दिन होता है, जो सुबह से देर रात तक ख़यालों में बीतता रहता है। चाँद है कि धीरे दिल मे उतर रहा है। मेरी आँखें जितनी बन्द होती जाती है। चाँद उतना ही अधिक दिल के क़रीब महसूस होता है।
बहुत पुरानी तस्वीर अक्सर बहुत पुरानी नहीं होती है।

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