आम की ओर से चिड़िया को चिट्ठी

 उसका नाम होने को तो कुछ भी हो सकता था। न होता तो भी उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। उसका काम था शाखों पर झूलना। पत्तों से शरारतें करना। पेड़ को गाने सुनाना।

उसका कुछ पक्का न था कि वह कब आएगी। वह अक्सर हवा के झौंके की तरह आती थी। आई और गायब। गायब और फिर से हाज़िर। कभी-कभी तो वह बार-बार आती। पलक झपकने भर के समय में वह कई बार आ जाती।
खरगोश के लंबे कान जैसे पत्तों वाले चम्पा तक वह नहीं जाती थी। वह अक्सर अमृता की लता के सघन कोने में कुछ देर उल्टी लटकी हुई खोजबीन भरी निगाह दौड़ाती। फिर फुर्र से उड़ती हुई आक के फूलों में आ बैठती। वह गाना पहले सुनाती और अपनी चोंच से फूलों को बाद में छेड़ती थी।
एक सुबह मुझे लगा कि आम का नन्हा पेड़ उसके आने का इंतज़ार करता है। वह आती तो आम के पेड़ को अपने पंखों की हवा तक न लगने देती। ये ख़याल आने के बाद मैं बार-बार आम और उसको एक साथ देखता। वे दोनों दूर-दूर होते मगर मैंने एक रिश्ता सोच लिया था।
ऐसे रिश्ते को क्या कहूंगा? इसी उधेड़बुन में मैंने बहुत सारी बातें सोची। मुझे कोई ठीक बात हाथ न लगी। कोई पूछेगा तो कह दूंगा कि पेड़ उस चिड़िया के साथ इकतरफ़ा प्रेम में पड़ गया है। वह आकाश की ओर उठना भूलकर दाएँ-बाएँ ताकाझांकी करने और अक्सर चुप होकर सो जाने में लगा रहता है।
मैं सुबह जब सूरज नहीं निकला होता है तब इस जगह आकर बैठ जाता हूँ। कभी-कभी तो पेड़ और चिड़िया को सोचकर सुबह ही मुस्कुराने लगता हूँ। मुझे कोई मुस्कुराता देख ले तो पक्का वह भी यही समझेगा कि मैं प्रेम पड़ गया हूँ। ये कितनी अच्छी बात है न कि प्रेम में केवल उदासी और इंतज़ार ही नहीं होता। उसमें मुस्कान भी होती है।
ऐसे ही एक सुबह मैंने सोचा कि पेड़ ने चिड़िया को चिट्ठी लिखी है। उसने प्रिय लिखकर नीचे की पंक्ति में लिखा है। मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ। कहना ये है कि मुझे तुम्हारी आंखें पसन्द है। मैं चाहता हूँ तुम कभी मेरे कंधे पर अपने नाज़ुक पंजों वाले छोटे तीखे नख चुभा दो। इसके आगे चिट्ठी खाली पड़ी थी।
उस पन्ने में बहुत कुछ लिखा जा सकता था।
आज सुबह मैं आंगन में आराम कुर्सी पर सीधा बैठा था कि मुझे लगा कोई चिट्ठी गिरी पड़ी है। मैं मुस्कुराया। प्रेम में बेनामी चिट्ठियां लिखना भी कितना मज़ेदार काम होता है। वह जो पढ़ रहा होता है, उसे विश्वास नहीं होता कि ये उसके लिए लिखा गया है। वह जो लिखता है समझता है कि उसे तो सब पता है ही कि ये किसके लिए है।
"देखो! चिड़ियों, तोतों और बाकी सब सुंदर परिंदों को जागते ख़्वाबों में देखना अच्छा है। मुझे मत सोचा करो।" ये चिट्ठी शायद आम के लिए थी। मैंने उदासी से आम के नन्हे पेड़ को देखा। मुझे आम पर दया जैसा प्रेम आया। चिड़िया को ऐसा जवाब नहीं देना चाहिए था।
आम की टहनियों पर गौरैया का एक झुंड पंचायती कर रहा था। आम हवा के साथ लहरा रहा था। मालती से अधिक फूल मोगरा पर खिले थे।
मैंने आम की ओर से चिड़िया को चिट्ठी लिखी। "प्रेम में चुप रहना ही अच्छा होता है। मैं भी चुप हो जाता हूँ।"
जीवन कितना अजीब है न। कभी चाय के बिना आँख नहीं खुलती। चाय के इंतज़ार में झेर ले रहा होता हूँ। कभी सुबह की पहली चाय को भूल जाता हूँ। आज अभी जब आभा ने चाय का प्याला रखा तो याद आई कि चाय अभी बाकी है।
चाय का घूंट लेते ही मैंने महसूस किया कि मोगरा की एक शाख लचक से भर उठी है। अचानक चिड़िया मोगरा के बीच से उड़ कर आम के कान में पास से बलखाती हुई गुज़री। आम के खरगोश कान जैसे लम्बे पत्ते खुशी लहक उठे। चुहिया के कान जैसे पत्तों वाली अपराजिता के नीले फूलों से स्याही बिखर रही थी।
पता नहीं उस चिड़िया को क्या कहते हैं? मगर आम उसको बहुत प्रेम करता है। या हो सकता है मैं उससे प्रेम करता हूँ और आम का बहाना बना रहा हूँ।
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