काळी भींत गेमरिंग रो तोड़

#भंगभपंग - 4

बाड़मेर स्टेडियम में पाँच छह सौ दर्शकों की हुटिंग चल रही थी। खेल का पहला हाफ पूरा हो गया था। फुटबाल को अपने पाँव के नीचे दबाये हुये नबी ने मांगिलाल से कहा- "ईए गेमरे दुख दीयो है। डीकरो कालो पाडो" इतना सुनते ही गेमर सिंह ने एक बेंत बताई और कहा- "गेमरो काळी भींत है, होएं माथो फोड़ो।" लक्ष्मी नगर में रहने वाले पुलिस कांस्टेबल गेमर सिंह फुल बैक थे और फुल टेंशन भी थे। दुनिया में बाड़मेर ही इकलौता क़स्बा था जहां के फुटबाल प्रेमियों में सेंटर फॉरवर्ड से अधिक लोकप्रिय कोई फुल बैक खिलाड़ी था।

क़स्बे में फुटबाल खेलने वालों की बड़ी पूछ थी। मांगिलाल, कुन्दन, नबी, रवि जैसे साधारण अदने लोग सड़क पर निकल जाते तो युवाओं का एक कारवां उनको घर तक पहुंचा कर आता था।

हर मैदान के खिलाड़ी खेल समाप्ति पर दूध पीने रेलवे स्टेशन के सामने के चाय ढाबों पर आया करते। खेरू की दुकान पर इन खिलाड़ियों के लिए दूध के स्पोंसर तक आते थे। इन काले कलूटे, बिखरे बालों वाले, घिसे स्पाइक्स शू पहनने वालों के लिए प्यार की एक बंदनवार लगी रहती थी। ये खेरू की चाय दुकान और लवली टी स्टाल को जोड़ती थी। इसी बंदनवार के नीचे से सारा शहर गुज़रता था, "इक्कीस ग्लास दूध देना। पैसे मैं दे रहा हूँ" ये सम्मान देने के लिए प्रायोजक होड़ में रहते।

उस दोपहर बाद चार बजे शुरू हुआ फुटबाल का खेल बिना निर्णय के समाप्त हो गया। गेमर सिंह अपनी तोंद पर पुलिस की खाकी स्वेटर डाल कर साइकिल पर चढ़ गए। बाकी खिलाड़ी भीड़ के साथ स्टेडियम से शहर को लौट रहे थे। ये समझना कठिन था कि ये राम को वनवास के लिए पहुंचाने जाती भीड़ थी या उनका स्वागत करके लाती हुई भीड़।

नीलकंठ फेक्ट्री की ढलान चढ़ने के बाद कारवां में शामिल पैदल चल रहे कई लोग अपनी सायकिलों पर सवार हो गए। उन साइकिल सवारों के इंतज़ार में लुहारों के वास के कुत्ते बैठे थे। उन्होने भी सम्मानपूर्वक सायकिलों के साथ दौड़ लगाई।

खेरू टी स्टाल पर निकर पहने बैठे खिलाड़ियों के पास से तीन बुजर्ग गुज़रे। एक ने पूछा- "कुण जीत्यो?" दूजे ने पूछा- "के रिजल्ट रयो?" तीजे मगराज जी थे। उन्होने कहा- "खेल जीवन में अनुशासन लाता है। सम्मान करना करना सिखाता है और आपसी सद्भाव को बढ़ाता है।" आखिरी बात का अर्थ खिलाड़ियों और उनके प्रशंसकों को समझ न आया।

नबी ने कहा- "मोंगा खेल तकनीक रो सुधार करणो पड़ेला"

मांगिलाल कुछ जवाब देते इससे पहले ही एक गोलीदार ने कहा- "डमजी सै ना"

फुटबाल खिलाड़ी इस क़स्बे के चरक और लुक़मान माने जाने वाले डमजी को खोजते हुए सोन तलाई तक गए लेकिन डमजी कहीं न मिले। लौटते हुए सदर बाज़ार में मालूम हुआ कि आज डमजी फकीरों के कुएं के पास वाली गली ऊपर जहां पहाड़ी खत्म होती है, वहीं बने गणेश मंदिर में औषधि का संसाधन करेंगे। ये वही चमत्कारी मंदिर था जहां से राइट बंधुओं ने हवाई जहाज की भव्य कल्पना को साकार अपनी आँखों से देखा था।

डमजी को पाँव धोक देकर पसीने से भरे खिलाड़ी आँगन पर बैठ गए।

उन्होने डमजी को अपनी परेशानी बताई। "कित्ति भी तेज़ किक मारो गेमरो आडो आवे रो। दौड़ भाग रो सत्यानास। ईए रो कोई इलाज बताओ।"

डमजी ने चिलम से एक कंचा निकाला। राख़ को मैदान की घास की तरह आँगन पर फैला दिया। उन्होने पूछा ये क्या है? खिलाड़ियों ने कहा- "कन्टा"

डमजी ने थोड़ा विचार किया। सबके लिए एक-एक कप ठंडाई मँगवाई। खिलाड़ी बंधु जो रोज़ चीनी मिला दूध पीते थे, उनके मुंह में काजू, बादाम, सौंफ, गुलाब का स्वाद आया।

ठंडाई ने अपना असर करना शुरू किया। पसीने से भरे चेहरे शांति और आनंद से भरने लगे। डमजी ने कंचा फिर से आँगन में रखा। पूछा- "ये क्या है?" सब खिलाड़ी एक साथ बोले "फुटबाल।" घनघोर अचरज ये हुआ कि उन्होने जीवन में पहली बार काँच की फुटबाल देखी। वे डमजी के आगे नतमस्तक हो गए।

डमजी ने कहा- "दुनिया उल्टी खोपड़ी की है। इसे जिधर जाने का कहोगे उसकी उल्टी जाएगी। दायें मारो तो बाएँ चल पड़ेगी।"

इतना कहकर डमजी ने तर्जनी को अंगूठे से बांध कर कंचे पर बाईं तरफ प्रहार किया। कंचा अंगुली से चोट खाकर वलय की तरह दायीं और जाने लगा। फुटबाल खिलाड़ी स्थिर आँखों से देख रहे थे कि स्पाइक्स पहनी मज़बूत टांग बाईं तरफ जा रही थी जबकि काँच से बनी विशालकाय फुटबाल दायीं तरफ।"

खिलाड़ी एक साथ बोले- "ये कैसे हुआ?"

डमजी ने कहा- "भविष्य में इसे फुटबाल का कर्ल शॉट कहा जाएगा। जाओ अभ्यास करो"

खिलाड़ियों ने लौटकर इस शॉट का अभ्यास किया। अब वे पेनल्टी लेने के लिए दौड़ते हुए दायीं ओर झुकते हुए फुटबाल को उल्टी दिशा में किक मारते। फुटबाल हवा में वृत्ताकार घूमती हुई गोल के कोने में घुस जाती। इस अभ्यास का परिणाम भी अगले मैच में मिल गया। काळी भींत फुलबैक गेमर सिंह के पीछे से घूमकर गोलकीपर को छकाती हुई फुटबाल गोल पोस्ट में घुस गयी।

खेल समाप्ती पर पर गेमर सिंह ने पूछा- "नबीया ए कोंकर कियो?" नबी मुसकुराता चलता रहा। विजया औषधि की स्मृति से ही शरीर मद से भरने लगा।

इस बात के तीस साल बाद इंग्लैंड से एक गोरा आदमी अपनी बीवी और दो बच्चों को साथ लिए पनघट रोड नामक पतली सी गली में डमजी को खोज रहा था। वह दुनिया भर में फुटबाल का कर्ल शॉट लगाने का उस्ताद माना जाता था। उसने कल्याणजी सोनार से कहा- "आय एम बेकहम। आय एम लुकिंग फॉर डैमजी बावा" कल्याण जी ने गोरे को रास्ता बता दिया- "ओ उआ दैट। गो पाधरा एंड टेक डावा टर्न।"

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