इन दिनों की याद


बिल्ली हेजिंग के पास पीठ के बल लेटी है। मैं मुख्य द्वार के पास लोहे की लंबी बैंच पर बैठा हूँ। हम दो ही हैं। बाकी दफ़्तर में सन्नाटा पसरा है। मैं बिल्ली को देखता हूँ और वह मुझे देखती है।

विंक पर बहादुर शाह ज़फ़र की ग़ज़ल प्ले कर ली है। मेहदी हसन गा रहे हैं। बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी।

तस्वीर थोड़ी देर पहले स्टूडियो में ली थी। इन दिनों की याद की तरह बची रहेगी।