धुंध का कालीन

मेरे सामने पुराने काग़ज़ों की सतरें थीं। जैसे मेरे बीते बरस किसी पुलिंदे से गिर कर बिखर गए हों। मैंने एक नज़र उन सतरों को देखा। मेरा देखना ऐसा था कि ये हैं तो है, इनका क्या किया जा सकता है। बीते हुए काग़ज़। मैं उनके प्रति उदासीन बना रहा।

उन काग़ज़ों में जो लिखा था, उसे कोई नाउम्मीदवार ही पढ़ सकता था। उन काग़ज़ों को एक हसरत से देखना केवल उसके लिए सम्भव रहा होगा जिसने कभी जाना हो कि ठहर कर देखना ही जीवन है। केवल दौड़ते भागते हुए लोगों, सभ्यता और समय का पीछा करना एक बेकार काम है।

क्या उन काग़ज़ों में कोई कागज़ किसी बुरादे में बचे हुए बारूद सा हो सकता था या वे सिर्फ सीलन का घर थे? मुझे नहीं पता लेकिन मैंने बार-बार उनको मुड़कर देखा।

क्या मैं बिस्तर की उन सलवटों को याद करना चाहता था जो अकेले रह जाने के बाद बची थी। या फिर शायद मैं उन जगहों पर जाकर बैठ जाना चाहता था, जहाँ मुझे केवल अकेले ही होना था। हो सकता है उन काग़ज़ों को देखते हुए मैंने सोचा हो कि मेरे चेहरे पर छूटे नाज़ुक निशान उन काग़ज़ों में बिखरे-टूटे मिल सकते थे।

हवा तेज़ चलने लगी। पीपल से गहरी और बेचैन करने वाली आवाज़ें आने लगीं।

मैंने मुड़कर नहीं देखा। क्या ये आवाज़ें उन्हीं काग़ज़ों की सतरों से आ रही थी या मेरे दिल के भीतर से उठ रही थी। मैं अचानक भरभरा कर ढह जाने का सोच कर डर गया।

वो जो साथ नहीं है, उसे खो देने का डर।

अचानक बारिश होने लगी। बारिश चौबीस घण्टे बरसती रही। एक धुंध का कालीन बिछा रहा। उस कालीन पर धुंध के फाहे उड़ते रहे।

दिमाग एक शैतान का घरोंदा है। प्रेम में डूबे डरे हुए शैतान का।